हिंदी मनोरंजक जगत के ऐसे अभिनेता जो ऊँचाईं में कम हैं लेकिन उनकी कला कईयों से दुगुनी है। हम बात कर रहे हैं टीवी सीरियल और हिंदी फिल्मों में काम कर चुके प्रसिद्ध अभिनेता ‘लिलिपुट’ की। लिलिपुट का असली नाम एम एम फारूकी है और वे बिहार के गया के रहने वाले हैं। अपनी कम ऊँचाईं को लेकर उन्हें शुरू से ही लोगों का अलग व्यवहार देखना पड़ा लेकिन आज वे बहुत ऊँचे मुकाम तक पहुंच चुके हैं।
मिर्जापुर सीरीज के दूसरे सीजन में उन्होंने दद्दा त्यागी का किरदार निभाकर मनोरंजन जगत में वापसी की थी। उसके पहले वे स्क्रिप्ट लिखकर निर्माताओं के चक्कर लगा रहे थे। वे एक फ़िल्म निर्देशित करना चाहते हैं। उनके पीठ पीछे लोग कहते हैं कि बौने लोग अब फ़िल्म भी बनाएंगे। ऐसी बातें वे बचपन से सुनते आ रहे हैं, उन्हें अब इन सब चीज़ों से फर्क नही पड़ता।
कद कम होने के कारण बहुत कुछ सहना पड़ा
लिलिपुट जब 14 वर्ष के थे तभी से उनके पैर घुटनों से मुड़ चुके थे। उसी दौरान वे एक लड़की के इश्क में भी थे लेकिन इज़हार न कर सके। वजह थी तो उनकी टांगे। उन्होंने निर्णय लिया कि पैर ठीक करवाएंगे और जाकर उस लड़की को दिल की बात बताएंगे। जब डॉक्टर के पास पहुंचे तो सुनने को मिला, “पैर सीधे हो जाएंगे लेकिन उनकी ऊँचाईं नही बढ़ पाएंगी।” वे और बौनों की तरह नही है। लिलिपुट के सिर्फ पैर छोटे हैं। कमर के ऊपर का भाग्य सामान्य लोगों की तरह है।
एम एम फारूकी जब घर से निकलते थे तो आस पास के लोग उन्हें देखने निकल पड़ते थे मानो वे कोई तमाशा दिखला रहे हों। वे बताते हैं कि कम कद का होना उनके लिए आसान नही था। एक बार जब वे कॉलेज गए तब जूलॉजी के प्रोफेसर के आने पर सभी खड़े हुए। प्रोफेसर ने लिलिपुट की तरफ देखा। जब सभी बैठ गए तब प्रोफेसर की निगाहें वापिस लिलिपुट पर पड़ी। उन्होंने उस दिन लिलिपुट को 3 से 4 बार उठने बैठने को कहा। दअरसल प्रोफेसर अचरज में थे कि यह बंदा खड़ा होता है तो बौना लगता है लेकिन जब बैठता है तो सामान्य लगता है।
‘लिलिपुट’ नाम के पीछे है मज़ेदार कहानी
लिलिपुट शुरू से ही अभिनय करते आये थे। वे गाँव में अपने दोस्तों के साथ सरस्वती पूजा के दिन नाटक किया करते थे। उनका पूरा नाम मिस्बाह मुद्दीन फारूकी है जो कोई भी सहीं से ले नही पाता था। मिस्बाह का अर्थ होता है दीपक। जब ‘मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया’ में 1973 में इंटरकॉलेज कॉम्पिटिशन हुआ तो उसमें फारूकी ने स्टैंडअप कॉमेडी किया। उसमें वे प्रथम आये और अखबार में छपा कु. फारूकी।
फारूकी इससे परेशान हो गए और बोला, “इन्होंने तो जेंडर ही चेंज कर दिया।” और तब उन्होंने ऐसा नाम सोचा जो कोई भी याद कर सके और लिलिपुट नाम रख लिया। उन्होंने सोचा कि फ़िल्म इंडस्ट्री में तो सभी अपना नाम बदलते हैं। जब वे पहली बार ट्रैन के रिजर्वेशन के लिये आए तब पहली बार लिलिपुट नाम लिखवाया।
बौने लोग सिर्फ कॉमेडी नही सीरियस रोल भी कर सकते हैं
लिलिपुट के एक गहरे मित्र उन्हें मेहबूब के साथ कॉमेडी करते हुए देखना चाहते थे। जब लिलिपुट को मुंबई आने का मौका मिला तब उसी दोस्त ने 150 रुपये दिए थे। एक समय तो ऐसा आया जब लिलिपुट को काम के बिना 15 दिनों तक भूखा रहना पड़ा था, तब उनके कुछ दोस्तों ने सहायता की।
लिलिपुट ने अभिनय के साथ कई शोज और फिल्मों के लिए संवाद भी लिखे। वर्ष 1985 में आई ‘सागर’ में उन्होंने खुद को बड़े पर्दे पर देखा। और उसी दौरान उन्होंने टीवी सीरियल ‘इधर उधर’ में भी काम करना शुरू किया। लिलिपुट ने न सिर्फ कॉमेडी रोल्स किये बल्कि उन्होंने सीरियस रोल करके यह दिखाया कि बौने कलाकार सिर्फ हंसाने के लिए नही होते। जब पहली बार पृथ्वी थिएटर में उन्हें कॉमेडी से इतर सीरियस रोल दिया गया तो वे डर गए। उन्होंने रोल करने से मना किया तो शशि कपूर से उनको डांट भी पड़ी। 1998 में आई “वो” में उन्होंने अपने अभिनय से सबको प्रभावित किया था।
शाहरुख और नसीरुद्दीन अभिनीत चमत्कार के डायलॉग्स लिलिपुट ने ही लिखे थे। विक्रम और बेताल, देख भाई देख और ‘ज़बान संभाल के’ से उन्होंने अपने ढेरों फैन्स बनाये। आंटी नम्बर वन, शरारत और बंटी और बबली में उन्होंने दर्शकों को खूब हँसाया।
जब लिलिपुट को बीच सड़क में थप्पड़ जड़ा गया
लिलिपुट बताते हैं कि एक बार जब वे कार चलाते हुए जा रहे थे और एक दुपहिया चालक से टकराने से बचे। तब उस दुपहिया वाहन वाले ने इनकी कार रुकवाई और जब देखा कि ये बौने हैं तब इनको खूब गाली दी और थप्पड़ भी जड़ दिया। लिलिपुट शांत रहे। वे दुख जताते हैं कि बौने लोगों के लिए शायद ही कोई एनजीओ होगा। इनकी पीड़ा कोई नही सुनना चाहता। शाहरुख की फ़िल्म ज़ीरो इनको तनिक भी पसंद नही आई थी। मिर्जापुर के बाद उन्हें कुछ और वेब सीरीज के ऑफर मिले हैं। हाल ही में आई विजय की फ़िल्म ‘बीस्ट’ में इन्होंने उमर फारूकी की भूमिका निभाई थी।