भारतीय सिनेमा के पहले एक्शन और डांसिंग स्टार थे भगवान
भगवान दादा कम बजट फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। कहा जाता है कि फिल्मों में मुक्के से फाइट की शुरुआत सबसे पहले उन्होंने ही की थी। भगवान दादा को भारतीय सिनेमा का पहला डांसिंग स्टार भी कहना मुश्किल नही होगा।
फिल्मों के शुरुआती दौर में अमिताभ ने नाचने की कला भगवान दादा से ही सीखी थी। भगवान दादा ने ऋषि कपूर को भी नृत्य के गुण सिखाये थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान दादा और रताज कपूर के बीच दोस्ती थी। राज कपूर की सलाह पर ही सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म ‘अलबेला’ का निर्देशन भगवान दादा ने किया था।
भगवान दादा की कई फिल्मों के रील्स जलकर खाक हो गए
भगवान दादा का असली नाम भगवान अबाजी पलव था। भगवान दादा का जन्म एक मिल में काम करने वाले मजदूर के घर हुआ था। भगवान दादा ने फिल्मी सफर की शुरुआत मूक फ़िल्म से की थी। बाद में वे बोलती फिल्मों में आये।
कहा जाता है कि गोरेगाँव के स्टूडियो में आग लग जाने से भगवान दादा की फिल्मों के कई रील्स जलकर राख हो गए। भगवान दादा को निर्देशन में बड़ा मजा आता था। उन्होंने बेहद कम बजट में फिल्मों का निर्माण प्रारंभ किया था।
हॉलीवुड एक्टर से प्रभावित होकर खुद करते थे स्टंट
भगवान दादा अपने फिल्मों के स्टंट और फाइट सीन खुद करते थे। उस ज़माने भी हल्के-फुल्के फाइट के लिए अभिनेता बॉडी डबल रखते थे लेकिन भगवान दादा ही ऐसे अभिनेता थे जो फाइट सीक्वेंस खुद करते थे। वे एक्टर डगलस फेयरबैंक्स से बेहद प्रभावित थे। द
अरसल फेयरबैंक्स अपने फिल्मों में एक्शन स्वयं करते थे। राज कपूर अपने दोस्त भगवान दादा को इंडियन डगलस कहकर संबोधित करते थे। भगवान दादा को एक दफा अपनी निर्माणधीन फ़िल्म में नोट उड़ाने थे। उन्होंने उस सीन के लिए असली नोटों का प्रयोग किया था।
ललिता पवार को थप्पड़ मारकर कान से निकाल दिया था खून
बात है 1942 की जब भगवान दादा अभिनेत्री ललिता पवार के साथ ‘जंग-ए-आज़ादी’ की शूटिंग कर रहे थे। फ़िल्म के एक सीन में भगवान को ललिता के गाल पर थप्पड़ मारना था। भगवान दादा ने इतना ज़ोरदार थप्पड़ मारा की ललिता के कान से खून बहने लगा और वे सेट पर ही बेहोश हो गई। उनके एक आंख पर इसका असर हुआ। उनके चेहरे का एक भाग पैरालिसिस का शिकार हो गया था जिस कारण एक आंख छोटी हो गई थी। वे कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं। जब वे वापिस फिल्मों में आई तब उन्हें नेगेटिव किरदार ज्यादा आफर होने लगे और वह बुरी महिला बनकर रह गईं।
हफ्ते के सातों दिन के लिए अलग-अलग 7 गाड़ियां रखते थे भगवान
राजा की तरह ज़िंदगी बिताने वाले भगवान दादा का वह गीत तो आपने सुना ही होगा ‘किस्मत की हवा कभी नरम, कभी’ और ‘शोला जो भड़के’। ये दोनों ही गीत उनकी सुपरहिट फिल्म ‘अलबेला’ (1951) की थी। जब भगवान दादा कर्ज में डूब चुके थे तब उन्हें जुहू स्थित अपना बंगला बेचकर चॉल में शरण लेना पड़ा था। वे सात गाड़ियां रखते थे, हफ्ते के अलग दिन के लिए अलग गाड़ी। वे सभी गाड़ियां बिक गई।
लोग बताते हैं कि वे इतनी शराब पीने लगे थे कि घर मे शराब की हज़ारों बोतले इकट्ठा ही गईं थी। गणपति का जुलूस निकालने के बाद उनके चॉल के पास रुकती थी। जब भगवान दादा अपना सिग्नेचर डांस करते थे तब वह जुलूस आगे बढ़ता।