भारत के ऐतिहासिक फ़िल्म शोले के कई सीन, डायलॉग, गाने और किस्से भारतीय सिनेमा लवर्स को हमेशा ही याद रहेंगे। आज हम उसी शोले फ़िल्म से जुड़ा एक किस्सा आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं।
गब्बर के लिए पहली पसंद ‘डैनी’ थे
जब शोले फ़िल्म की कास्टिंग शुरू हुई तो ‘गब्बर सिंह’ के लिए पहले डैनी डेन्जोंगपा को लिया गया था। उन दिनों डैनी विलन के किरदार में खूब जमते थे। जब सलीम-जावेद ने शोले की पटकथा रमेश सिप्पी को सुनाई तो उन्हें लगा कि गब्बर के रोल के लिए एक कठोर विलन चाहिए। फ़िल्म की असली जान विलन में बसती थी। गब्बर की खूँखार हँसी और उसके बोलने का तरीका ही उस किरदार की जान बन रहा था।
धर्मात्मा फ़िल्म के लिए डैनी ने छोड़ी शोले
जब फ़िल्म की कास्टिंग शुरू हुई तो संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ और हेमामालिनी को लिया गया। उन्होंने गब्बर के लिए डैनी को रखा। कहा जाता है कि डैनी ने कुछ स्क्रीन टेस्ट भी दिए थे और तैयारी भी कर रहे थे। उन्हीं दिनों फिरोज़ खान की धर्मात्मा में डैनी को जबरदस्त रोल आफर हुआ। डैनी को लगा कि धर्मात्मा में उन्हें दमदार रोल मिला है और वे कुछ अलग कर सकते हैं। रमेश सिप्पी ने एक इंटरव्यू में बताया कि डैनी ये भी सोचने लगे थे कि शोले में इतने महारथी कलाकार भरे हुए हैं। पता नही उनके रोल का क्या होगा। कहीं वे इन सब के बीच दबकर तो नही रह जाएँगे। इन्ही सब बातों से उन्होंने सिप्पी साहब को फ़िल्म के लिए मना कर दिया। सिप्पी ने कहा कि अगर डैनी भी गब्बर का किरदार करते तो ठीक ही करते।
रमेश सिप्पी ने अमजद का एक नाटक देख रखा था
अमजद खान को सलीम खान ने एक स्टेज नाटक में देखा था। वे उनके अभिनय प्रतिभा को पहचान गए थे। वे उन्हें किसी फिल्म में मौका देना चाहते थे। तभी सिप्पी साहब ने शोले की शूटिंग के 1 महीने पहले बताया कि डैनी ने गब्बर का रोल करने से मना कर दिया है। ऐसे में तुरंत फ़िल्म के लेखक सलीम-जावेद ने अमजद खान का नाम आगे किया। उन दिनों रमेश सिप्पी की बहन भी थिएटर प्ले करती थी। एक दिन उन्होंने अपने शो में सिप्पी को आमंत्रित किया। उस नाटक में उनकी बहन के साथ अमजद खान ने एक अफ्रीकी की भूमिका निभाई थी। सिप्पी ने उन्हें देखा और उनके अभिनय से प्रभावित हुए।
एक नया लड़का भला एंग्री यंग मैन के सामने खूँखार कैसे लग सकता था
उन्होंने अमजद खान को शोले में लेने का निर्णय तो कर लिया था लेकिन उनका मन गवाही नही दे रहा था कि एक नया कलाकार इतने महारथी के बीच वो गब्बर सिंह वाला डर कैसे पैदा करेगा। आखिर फिल्मों में गुंडों की धुलाई करने वाले अमिताभ और धर्मेंद्र के सामने ये नया लड़का अमजद खान खूँखार कैसे नज़र आएगा। उन्होंने तुरंत अमजद को अपने आफिस बुलाया। उस दिन सिप्पी साहब गद्दे पर लेटे हुए आराम फरमा रहे तब। अमजद खान ने आफिस में एंट्री ली और घूमकर सिप्पी के सामने खड़े हुए। तभी निर्देशक ने तय कर लिया कि अमजद ही गब्बर बन सकते हैं। उन्होंने अमजद को डाकू के कपड़े पहनाए और दाढ़ी बढ़ाने को कहा।
रिलीज से पहले अमजद की आवाज़ को डब करने को कहा गया
सिप्पी साहब बताते हैं कि फ़िल्म का फाइनल प्रिंट आने के बाद उन्हें कुछ लोगों ने कहा कि अमजद की पतली आवाज़ ज़रा भी डरावनी नही लग रही है। उनकी आवाज़ को अमरीश पुरी जैसे किसी भारी आवाज़ वाले अभिनेता से डब करा लो। एक पल के लिए सिप्पी को भी लगा कि कहीं लोग अमजद को हँसी मजाक में न लेने लग जाये। उन्होंने डब नही करने का ही निर्णय लिया। उस फिल्म में बोला गब्बर का एक-एक संवाद आइकॉनिक बन गया। चाहे ‘कितने आदमी थे?’ वाला संवाद हो या ‘कौन से चक्की का आटा खाती हो’ वाला संवाद हो। सभी ने दर्शकों के दिलो पर छाप छोड़ दी। अमजद का वह संवाद ‘जब दूर दूर तक बच्चा रोता है तो माँ कहती है चुप हो जा वरना गब्बर आ जायेगा।’ सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा।
फ़िल्म पर्दे पर लगी तो इंटरवेल में भी लोग बाहर नही आते थे
जब फ़िल्म पहले दिन पर्दे पर लगी तो सिप्पी साहब को एक सिनेमा मालिक का कॉल आया। उन्होंने कहा कि इंटरवेल हो चुका है लेकिन एक भी आदमी सिनेमाघर से बाहर नही आ रहा है। सिप्पी साहब को समझ ना आये कि क्या हो रहा है। बाद में उन्हें पता चला कि लोग फ़िल्म के सेकंड हाफ में क्या होगा यह जानने के लिए इतने उतावले हो चुके थे कि कोई समोसा खरीदने बाहर ही नही आया। इतिहास गवाह है कि जिस फ़िल्म ने रोमांच बरकरार रखा, वही सबसे बड़ा हिट साबित हुआ। ‘बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा’ वाले सस्पेंस ने तो सिनेमा में इतिहास रच दिया था।