भारत के जनसंख्या नियंत्रण और सुरक्षित संबंधों के लिए कंडोम बेहद ज़रूरी है। आज के समय में भारत में कई कंपनियां हैं जो इस उत्पाद को बनाने में लगी हुई है। मैनफोर्स, कोहिनूर, ड्यूरेक्स और कामासूत्र जैसी कंपनियों ज विज्ञापन टीवी के साथ ही होर्डिंग्स पर भी देखने को मिल जाते हैं। लेकिन एक समय था जब भारत में इस उत्पाद का कोई उपयोग नही करता था। इसे बाहरी देशों से मंगाना पड़ता था। आज के इस लेख के माध्यम से हम उस पहली भारतीय कंपनी के बारे में जानेंगे जिसने कंडोम को घर-घर तक पहुंचा दिया।
भारत का पहला कंडोम ब्रांड ‘निरोध’
भारत में उत्पादित पहले कंडोम ब्रांड का नाम ‘निरोध’ था। निरोध को हम डीलक्स निरोध (Deluxe Nirodh) के नाम से भी जानते हैं। निरोध का उत्पादन सन 1968 में शुरू किया गया था। निरोध के कारण ही पूरे देश में परिवार नियोजन और जन्म नियंत्रण अभियान सफल हो पाया। 1964 में हमारे भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2.40 प्रतिशत हुआ करती थी जो निरोध की सहायता से सन 2005 में घटकर 1.80% प्रतिशत हो गई। और 2005 के बाद अगले दस वर्षों में यहीं जनसंख्या वृद्धि दर में और गिरावट हुई। 2015 में यह 1.26 प्रतिशत थी।
निरोध का निर्माण केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित भारत सरकार की पीएसयू (Public Sector Undertaking) हेल्थकेयर उत्पाद निर्माण कंपनी एचएलएल (Hindustan Latex Limited) लाइफकेयर द्वारा किया जाता है। भारतीय बाजार में 17 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ निरोध यहाँ सबसे ज्यादा बिकने वाला कंडोम ब्रांड है।
निरोध नाम के पीछे है मज़ेदार कहानी
यह बात है 1963 की जब हिंदुस्तान के बाज़ार में बहुत बड़े पैमाने पर भारतीय कंपनी द्वारा कोई कंडोम उत्पाद प्रस्तुत किया जा रहा था। इस उत्पाद के नाम को लेकर काफी बातचीत हुई। नाम कुछ ऐसा रखना था जो जनता को आकर्षित कर यह बतलाए की कंडोम उनके लिए कितना जरूरी उत्पाद है। साथ ही इस उत्पाद के नाम से यह भी दिखाना था कि इसका जुड़ाव अंतरंग संबंधों से है।
भारतीय काम के गुरु कामदेव के नाम पर ही इस उत्पाद का नाम “कामराज” रखने का निर्णय लिया गया। लेकिन उस समय सत्तारूढ़ दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर आसीन महोदय का नाम भी के. कामराज था। इसी कारण भारत के पहले कंडोम ब्रांड का नाम कामराज से बदलकर “निरोध” रखना पड़ा। निरोध का अर्थ होता है संरक्षण।
निम्न आय वर्ग के लोगों तक पहुंचाने के लिए कीमत 5 पैसे रखा गया था।
भारत में कंडोम उत्पादों का निर्माण पहले नही होता था लेकिन 1940 के आस-पास विदेशी ब्रांड्स यहां बिकने शुरू हो चुके थे और अमीर लोगों के बीच प्रचलन में आ चुके थे। 1940 में ये उत्पाद 25 पैसे (₹0.25) के दाम पर बिकती थी। भारत में कंडोम उसी दाम पर मिलती थी, जिस दाम में यह अमेरिका में मिलती थी। भारत में निम्न आय वर्ग के लोग कम शिक्षित और परिवार नियोजन में बेहद पीछे थे। जनसंख्या वृद्धि दर उन्हीं लोगों में ज्यादा था। यह उत्पाद उनके लिए बेहद महंगा होता था जिसे वे खरीदने से बचते थे।
भारतीय प्रबंधन संस्थानों (Indian Institutes Of Management) की टीम ने अपना ध्यान इस ओर किया और भारतीय सरकार को सुझाव दिया कि भारत में जनता को सस्ते दामों में कंडोम उपलब्ध करवाना बेहद ज़रूरी हो गया है। यह अनुशंसा की गई कि सरकार बाहरी देशों से कंडोम आयात करके 5 पैसे में इसे बेचें। इसी सुझाव पर 1968 में अमेरिका, जापान और कोरिया से कंडोम आयात करवाकर ‘निरोध’ के नाम से सबकी एक जैसी पैकेजिंग कराई गई। 5 पैसे का एक पैकेट मिलता था जिसके भीतर 3 कंडोम हुआ करते थे।
जापानी कंपनी के साथ मिलकर सरकार ने शुरू किया उत्पादन
जापान के ओकामोटो इंडस्ट्रीज के साथ तकनीकी सहयोग से हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (जिसे अब एचएलएल लाइफकेयर कहा जाता है) की 1966 में स्थापना की गई थी। प्रथम बार संयंत्र का संचालन 5 अप्रैल 1969 को तिरुवनंतपुरम के पेरूरकडा में 144 मिलियन कंडोम के सालाना उत्पादन के साथ शुरू हुआ था।
7 सालों में उत्पादन डबल होकर 288 मिलियन हो गया था। इसके बाद 1985 तक बेलगाम में एक और विनिर्माण संयंत्र शुरू किया गया था, जिसमें प्रति वर्ष 800 मिलियन निरोध की संयुक्त उत्पादन क्षमता थी। 2007 तक, एचएलएल लाइफकेयर (HLL Lifecare) ने दुनिया में निरोध की सबसे बड़ी विविधता का उत्पादन करके भारत का नाम बढ़ाया था।
बाजार में मांग बढ़ाने के लिए बनाई योजना
सरकार ने निरोध नाम से लोगों के लिए सस्ते दामों में कंडोम का उत्पादन तो शुरू कर दिया था लेकिन बाजार में मांग पैदा करने और लोगों को निरोध के प्रति जागरूक करने के लिए योजना की ज़रूरत थी। इसी कारण सितंबर 1968 में वितरण योजना शुरू की गई जो तीन योजनाओं के माध्यम से लागू किया गया।
नि:शुल्क आपूर्ति (Free Supply)
इस योजना के तहत जोड़ों को परिवार नियोंजन केंद्रों में निरोध को मुफ्त में बांटा गया। फील्ड ट्रिप के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों ने फ्री में निरोध को लोगों तक पहुँचाया। एचआईवी/एड्स की रोकथाम के लिए, निरोध को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भारत द्वारा खरीदा जाता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गठित कई केंद्रों के माध्यम से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा मुफ्त में जनता को बांटा जाता है।
वाणिज्यिक वितरण (Commercial Distribution)
इस योजना के तहत निरोध की मांग बढ़ाने के लिए आधुनिक विपणन तकनीकों जैसे समाचार पत्र और पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन, मूवी थियेटर, बिलबोर्ड और मुद्रित सामग्री का उपयोग करते हुए विज्ञापन के माध्यम से निरोध को एक उपभोक्ता उत्पाद के रूप में बढ़ावा देने का प्रयास किया गया था। खुदरा दुकानों में निरोध को आम जन के लिए सरलता से पहुँच बनाया गया था। साथ ही निरोध को सरकार द्वारा रियायती कीमतों पर बेचा गया, जिससे ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके।
डिपो होल्डर्स (Depot Holders)
इस योजना 1969 में शुरू किया गया था। जिसके तहत ग्रामीण डाकघरों को निरोध की आपूर्ति मुफ्त में की जाने लग रही थी। डाकघरों को सलाह दिया गया कि वे निरोध को बहुत कम कीमतों पर बेचें और उससे होने वाले आय को प्रोत्साहन के रूप में बनाए रखने की बात कही गई थी।