एम्बेसडर गाड़ी का नाम सुनते ही आपको क्या याद आता है। अगर आप पिछले सदी में बड़े हुए हैं तो आप कहेंगे, “ये सिर्फ गाड़ी नही है जनाब! ये इमोशन है।” इस कार को “किंग ऑफ इंडियन रोड्स” यूँ ही नही कहा जाता है। 30 सालों तक भारत की सड़कों में राज करने वाली हिंदुस्तान एम्बेसडर को स्टेटस सिंबल माना जाता था। यह आइकोनिक कार राजनेताओं से लेकर आम जनता की भी पसंदीदा थी।
वर्ष 2014 में इस गाड़ी का उत्पादन आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया गया था। 2017 में इस कंपनी को एक फ्रांसीसी कंपनी ने मात्र 80 करोड़ के रकम में खरीद लिया। लेकिन चेहरे में मुस्कान लाने का समय आ चुका है क्योंकि खबरों की मानें तो एम्बेसडर कार एक बार फिर से भारतीय बाजार में एंट्री लेने वाली है। इस बार इसके उत्पादक इसे इलेक्ट्रिक कार के रूप में लांच करने की योजना बना रहे हैं।
भारत की पहली कार निर्माता, हिंदुस्तान मोटर्स ने इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल उद्योग की एक यूरोपीय ऑटो कंपनी के साथ हाथ मिला कर संयुक्त उद्यम में प्रवेश करके अपने व्यवसाय को फिर से खड़ा करने का मन बनाया है।
पहली अम्बेसडर की कीमत 14,000 रुपए के करीब थी
हिंदुस्तान मोटर्स के संस्थापक बी एम बिरला थे। और हिंदुस्तान मोटर्स आदित्या बिरला ग्रुप का ही हिस्सा थी। इस कंपनी ने 1956 में गाड़ी बनाने वाली ब्रिटिश मोटर्स कॉर्पोरशन से उनकी दो कारों का निर्माण करने के लिए लाइसेंस ले लिया। ये दो कार थी मोरिस ऑक्सफ़ोर्ड 1 और मोरिस ऑक्सफ़ोर्ड 2। बाद में मोरिस ऑक्सफ़ोर्ड 3, हिन्दुस्तान एम्बेसडर की डिज़ाइन और अंदर ज्यादा स्पेस जैसी खासियत की वजह बनी। उन्होंने पहले हिंदुस्तान 10 और लैंडमास्टर कार बनाई। फिर 1958 में एम्बेसडर तैयार होकर सामने आई। पहले अम्बेसडर कार की कीमत 14,000 रुपए के आसपास रखी गई थी।
एलेक इसीगोंनिस ने किया था एम्बेसडर को डिज़ाइन
हम मेड इंडिया की बात आज करते हैं जबकि एम्बेसडर पूरी तरह से मेड इन इंडिया हुई करती थी। इस कार को अपने पास रखना इज्जत और शान की बात हुआ करती थी। सड़कों पर अधिकतर लाल बत्ती और नीली बत्ती के साथ ये गाड़ी दिख जाती है। कोलकाता की अधिकतर काली-पीली टैक्सी अम्बेसडर ही है। इस कार के डिज़ाइनर का नाम एलेक इसीगोंनिस था। उस समय के हिसाब से ये बेहद जबरदस्त डिज़ाइन थी।
मारुति सुजुकी ने हिला दिया एम्बेसडर का मार्केट
1960 से अस्सी के दशक तक इस कार ने अपने कॉम्पिटीटर ‘प्रीमियर पद्मिनी’ और ‘स्टैण्डर्ड 10’ को कहीं टिकने का मौका नही दिया और भारतीय रोड का राजा बन बैठा। 1983 में मारुति ने जापानी कंपनी सुजुकी के साथ मिलकर 800सीसी की बेहद सस्ती कार लांच कर दी। यह मारुति सुजुकी 800 उस वक़्त 53,000 की कीमत पर बेची जा रही थी। 90 के दशक में अम्बेसडर का बुरा दौर शुरू हो गया। आम लोग मारुति की ओर भागे और अम्बेसडर सिर्फ नेताओं और अफसरों तक ही सीमित हो गई। इस दौर में नई फैशनेबल कारें भी आईं जो अमीरों की पसंद बनती गई।
वैश्वीकरण और उदारीकरण से बाहरी कंपनियों का आगमन
‘फुलबोर मार्क 10’ नाम से एम्बेसडर के एक नए वर्जन को 1992 में यूके में बेचने का असफल प्रयास किया गया। इन कार में यूके के हिसाब से सीटबेल्ट और हीटर भी लगाए गए थे। एंबेसडर के कई मॉडल्स आए लेकिन ‘अम्बेसडर मार्क-1’ से लेकर आए ‘अम्बेसडर मार्क-4’ ही प्रमुख मॉडल थे। मार्क-2 और मार्क-3 के आने के समय यह कंपनी अपने ऊंचाइयों पर थी।
अम्बेसडर ने आखिरी मॉडल तक अपने यूनिक और पारंपरिक डिज़ाइन को नही छोड़ा। जब भी गाँव और छोटे शहरों में अम्बेसडर आती थी तब लोग समझ जाते थे कि ज़रूर कोई बड़ी शख्सियत आई है। देखने वाली बात ये होगी क्या देश की पहली डीजल कार अम्बेसडर इस मार्केट में अपनी पहचान बना पाएगी। इस वक़्त जहाँ हाइड्रोजन कार भी आने लगे हैं, वहीं इलेक्ट्रिक कार की कम्पनियां एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहीं हैं। खैर जो भी हो एम्बेसडर की जगह कोई नही ले पाएगा।