हम सभी ने बचपन में दशरथ माँझी की कहानी सुनी है। एक ऐसा इंसान जिसने अपनी जिद में एक बड़े पहाड़ को कांटकर सड़क बना दिया। ठीक इसी तरह आज हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे हैं जिसने बंजर पड़े ज़मीन को बहुत बड़े जंगल मे तब्दील कर दिया। जिस जगह पर पहले रेत के टीले होते थे, आज वहाँ हरियाली है। अपने मेहनत, लगन और जीव-जंतु के लिए कुछ करने की उम्मीद से उस महान इंसान ने ये काम शुरू किया था और आज सभी लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
असम के माजुली द्वीप को जंगल मे तब्दील किया
माजुली (Majuli) द्वीप असम के जोरहाट में पड़ता है। इस द्वीप के घने मोलाई जंगल में टूरिस्ट्स का जमावड़ा लगने लगा है। लेकिन कुछ सालों पहले उस द्वीप पर जंगल नही था, था तो सिर्फ रेत के टीले। ज़मीन इतना बंजर कि एक पौधा तक मुश्किल से ढूंढने पर मिलता था। कोई सोच भी नही सकता था कि एक दिन ऐसा आएगा जब वहाँ पेड़ ही पेड़ देखने को मिलेंगे।
इस बंजर जमीन की कायापलट करने वाले शख्स का नाम जादव पायेंग (Jadav Payeng) है। पद्मश्री से सम्मानित जादव अपने बसाए जंगल मे ही रहते हैं। वे यहां की देखभाल करते हैं। माजुली द्वीप में जादव के साथ उनका पूरा परिवार रहता है। ये सभी जंगल से मिलने वाले लाभ का फायदा उठाते हैं। यहां के फल-फूल और जड़ी-बूटियों का भरपूर उपयोग करते हैं। भारत में लोग इन्हें ‘फारेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जानते हैं।
बंजर जमीन को जंगल में तब्दील करने के पीछे ये कहानी है
माजुली द्वीप भारत के प्रमुख नदी ब्रम्हपुत्र के किनारे बना हुआ है। लगभग 37 वर्ष पहले इस नदी में भयंकर बाढ़ आई थी। उस बाढ़ ने कई लोगों की जिंदगियां तबाह करके रख दी थी। उस बाढ़ के कारण बहुत सारे जलचर पानी से माजुली द्वीप पर आ गए। माजुली द्वीप बेहद सूनसान। ना तो यहां उन्हें भोजन मिली और न ही ठहरने के लिए छाँव। इन दोनों की कमी से वे जलचर तड़प-तड़प के अल्लाह को प्यारे होने लगे। ये सब नज़ारा एक नवयुवक देख रहा था। वह नौजवान उन बेहसहारा और बेजुबान प्राणियों के लिए कुछ न कर पाने के कारण बेहद दुखी था। जादव ने लोगों से इसका हल पूछा तो उन्हें सुनने को मिला कि अगर उस क्षेत्र में पेड़-पौधे होते तो ये मासूम जलचर बच जाते।
बच्चे की तरह की थी एक-एक पेड़ की रक्षा
जादव ने ठान लिया था कि उन्हें क्या करना है। जादव ने जो सोचा था वह बहुत ही ज्यादा मुश्किल था। एक बंजर रेत के टीलों पर एक-एक पौधे उगाने में जादव के पसीने छूट गए लेकिन वे टिके रहे। वे हर रोज अपने झोले में तरह-तरह के पौधे लेकर जाते और उनको रोपते। शुरुआत में तो बहुत से पौधे मर जाते। लेकिन जादव ने अच्छे से उन पौधों की देखभाल की। पानी और जानवरों से उनकी सुरक्षा करते गए। आज जादव की मेहनत मोलाई जंगल के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है।
अब वन में 4 करोड़ से भी ज्यादा वृक्ष लगाए जा चुके हैं
इस मानव निर्मित वन में अब तक 4 करोड़ से भी ज्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं। माजुली द्वीप 1360 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में अपना फैलाव रखता है जिसमें से 550 एकड़ का उपयोग हो चुका है। जब जादव के द्वारा लगाए गए पौधे बड़े होकर पेड़ बनने लगे तो वहाँ जानवरों का बसेरा होने लगा। अभी इस जंगल में बाघ, गैंडे, हाथी, हिरण के साथ जंगली खरगोश जैसे कई जानवर रहते हैं। साथ ही इस वन में कई पक्षियों की प्रजाति और साँप भी देखने को मिलते हैं। जादव के इस साहसपूर्ण कार्य के लिए असम कृषि विश्वविद्यालय ने इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। जादव ने अपनी सारी ज़िंदगी पर्यावरण के नाम कर दी है।
नाम से छप चुकी है किताब, मेक्सिको से आया था बड़ा ऑफर
मानव निर्मित वन के रूप में मोलाई जंगल देश-विदेश के मीडिया में नाम कमा चुका है। जब एक पत्रकार को इसकी खबर हुई तो उन्होंने अपने सुने पर यकीन नही हुआ। वे बैग उठाकर माजुली द्वीप की तरफ चल पड़े। वे दंग रह गए कि जिस जगह पर पहले बलुओ के ढेर हुआ करते थे अब वहाँ वृहद जंगल बस चुका है। यह किसी चमत्कार से कम नही था। उस पत्रकार के माध्यम से जादव पायेंग की कहानी लोगों तक पहली बार पहुँची। जादव ने हर चुनौती के बारे में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि अब वे बेहद संतुष्ट और खुश महसूस करते हैं।
जो लोग इन दिनों जंगल काटकर कोयला निकालने की बात कर रहे हैं उन्हें एक बाद जादव से भेंट करना चाहिए। इससे उन्हें मालूम होगा कि जिस पेड़ को काटने में 30 सेकंड का भी वक़्त नही लगता उसे उगाने के लिए जादव ने बेजोड़ मेहनत की है। उनके अथक प्रयास के ऊपर किताब भी छपी है। ‘द बॉय हू ग्रेव अ फारेस्ट’ (The Boy who grew a forest) नाम के इस किताब से कई युवा प्रेरित होते हैं। जादव की कहानी से प्रभावित होकर मेक्सिको ने भी उन्हें अपने यहां जंगल बसाने का लिए आमंत्रित किया है। जादव भारत सरकार और असम सरकार से ऐसी बंजर जमीन मांग रहे हैं, जहाँ वे जंगल बसा कर ढेरों प्राणियों को घर दे सके।