Saturday, March 15, 2025

‘जल्लिकट्टु’ मौत या संस्कृति?

भारत अपनी संस्कृति को धरोहर को ताज मान कर हमेशा अपने सर पर सहेज कर रखता है, अलग अलग समुदाय के लोग यहाँ खुद को आज़ाद मानते है, और इन्ही वजहों के चलते भारत दुनिया भर में जाना है. होली, दिवाली रक्षाबंधन जैसे त्यौहार मनाये ही  जाते है इनके अलावा ऐसे कई त्यौहार है जिनके बारे में शायद ही कोई जानता हो और यदि कोई जनता भी है तो पूरी तरह नहीं जानता.

ऐसे ही है एक खेल ‘जल्लिकट्टु’… शायद अब आपको अंदाज़ा लग गया हो.

क्या है खेल…

जल्लिकट्टु ऐसा खेल है जिसमे बैल की ‘पुलिकुलम’ और ‘कंगायम’ जैसी प्रजाति शामिल है. खेल में बैल को भीड़ में छोड़ा जाता है, इसमें बैल के सींग मे एक कपड़ा बंधा जाता है, जिसे भीड़ में मौजूद लोगो को बैल चढ़कर वह निकलना होता है,जीतने वाले को इनामी राषि से सम्मानित किया जाता है, कई बार लोगो को काफी देर तक बैल के पीठ की सवारी करनी पड़ती है तब जाकर वे लाल कपडा निकाल पाते है, क्यूंकि बैलो की ये दो प्रजाति हिंसक और गुस्सैल होती है इसलिए यह खेल  जानलेवा भी बन जाता है. यह खेल केरल के त्यौहार पोंगल के साथ मनाया जाता है, जो हर साल जनवरी के महीने में आता है, पोंगल त्यौहार का हिस्सा मट्टू पोंगल वाले दिन इस खेल का आयोजन किया जाता है.

 

 

 

 

 

 

खेल को जानवर और खेल में मौजूद दर्शक और खेलने वाले भागी, दोनों के लिए जानलेवा ठहराते हुए सरकार ने कई बार इस खेल पर बैन लेकिन लोगो के आंदोलन के चलते बार बार बैन को खारिज करना पड़ा.

सर्वेक्षण में पता चला कि 2008 से 2014  बीच कुल 43 लोग और 4 बैल खेल के दौरान मारे गए है, और अकेले 2017 में 23 मौत और लगभग 2500 लोग घायल हुए थे. एनिमल वेलफेयर सोसाइटी का ध्यान, इस खेल में बैलो को नुक्सान पहुचाये जाने पर है, कि इस खेल में बैल को उकसाने  के लिए उसे ज़बरदस्ती शराब का सेवन करवाया जाता है, इतना ही नहीं बैल को उकसाने के लिए उसमे सुई चुभोई जाती है, इतना ही नहीं बैल की आँखों में मिर्च भी मली जाती है जिस से वह और भी ज़्यादा उत्तण्ड हो जाता है.

एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल करने के बाद, 27 नवंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिल नाडु सरकार को जल्लिकट्टु खेल को साल में  5 महीने के लिए जारी रखने का परमिट दिया वो भी कुछ लागू शर्तों के साथ जिनमे तमिल नाडु  सरकार ने 2 लाख की राशि खेल से पहले जमा करने के निर्देश खेल में घायल लोगो के इलाज के लिए दिए गए.

ससंकृति को आगे बढ़ाना अच्छी बात है किन्तु संस्कृति के नाम की तलवार उठाना गलत है.

Latest news
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here