आर्य वैदिक संस्कृति नगर ,ग्राम प्रधान ना होकर वन प्रधान रही है।आर्यों के चार आश्रम में से तीन आश्रम ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ ,सन्यास वनों में ही केंद्रित आश्रित थे। हमारे पूर्वजों को खुला परिवेश वातावरण बहुत भाता था। नगर ग्रामों में रहने की छूट केवल गृहस्थ को ही मिली हुई थी। भारत की दो तिहाई जनसंख्या वनों में ही निवासरत थी । हम कह सकते हैं सभी भारतवासी वनवासी थे। वनों की शोभा मे वृद्धि ऋषि-मुनियों के आश्रम वानप्रस्थ आश्रम इनमें संचालित गुरुकुल करते थे।
रघुकुल शिरोमणि मर्यादा पुरुषोत्तम चक्रवर्ती सम्राट राम ने दंडकारण्य में अपने वनवास के दौरान बहुत सा समय ऋषि-मुनियों के आश्रमों में बिताया। वाल्मीकि रामायण में ऐसी सभी आश्रमों ऋषि-मुनियों का नाम उल्लेख है ।जहां राम ने ऋषि-मुनियों को राक्षसों के आतंक से मुक्त किया। ऐसा ही एक आश्रम था पंपा सरोवर के किनारे सन्यासिनी परम विदुषी शबरी का। यह पंपा सरोवर आज भी विद्यमान है कर्नाटक राज्य के कोप्पल जिले में।
राम और शबरी की भेंट के संबंध में लोक में एक कथा प्रचलित है कि राम ने शबरी के झूठे बेर खाए लेकिन वाल्मीकि रामायण यहां तक कि तुलसीकृत रामचरितमानस में भी इस मिथ्या धारणा का समर्थन नहीं होता। वाल्मीकि रामायण अरण्यकांड में यह वर्णन इस प्रकार है।
तौ पुष्ककरिण्या: पम्पायास्तीरमासादघ पश्चिमम्।
अपश्यता ततस्तत्र शबयर्या रम्यमाश्रम।।२।।
तौ च दृष्ट्वा त सिद्धा समुत्थाय कृतातंजलि:
रामस्य पादौ जग्राह लक्ष्मणस्य च धीमतः।।४॥
माय तु विविधं वन्यं संचित पुरुषर्षभ ।
तवार्थे पुरुषव्याघ्र पम्पायास्तीरसम्भवम।।५॥
शब्दार्थ: कमलों से भरे हुए पंपा सरोवर के पश्चिम तट पर पहुंचकर राम लक्ष्मण ने तपस्विनी शबरी के रमणीय आश्रम को देखा। वह दोनों भाई नाना प्रकार के वृक्षों से आवृत उस आश्रम में पहुंच वहां की रमणीयता को देखते हुए शबरी के निकट पहुंचे। वह सिद्ध शबरी उन दोनों भाइयों को देखते ही हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। उनसे कहा है पुरुष श्रेष्ठ मैंने पंपा सरोवर के निकटवर्ती वन में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के कंद मूल फलों को आपके लिए इकट्ठा कर रखा है ऐसा कहकर उस शबरी ने उन्हें अर्घ्य पाघ आचमन यथाविधि प्रदान कर उनका आतिथ्य सत्कार किया।
वाल्मीकि रामायण में केवल इतना ही उल्लेख है वहां राम द्वारा झूठे बेर खाए जाने का दूर-दूर तक कोई उल्लेख नहीं है। हां लेकिन आगे प्रकरण में राम और शबरी के बीच वार्तालाप होता है राम शबरी की जीवनचर्या उनकी सिद्धियों उपासना की स्थिति समाधि आदि के विषय में प्रश्न उत्तर करते हैं शबरी की कुशल योग क्षेम पूछते हैं।
राम शबरी से कहते हैं हे! चारुभाषनि तुम यम नियमों के पालन में सफल तो हो गई हो तप के द्वारा प्राप्त होने वाला संतोष सुख एवं शांति तो तुम्हें प्राप्त हो गई है।
राम राम ने शबरी के लिए बेहतर सम्मान सूचक शब्दों का प्रयोग किया आदि कवि वाल्मीकि ने शबरी के लिए तपस्विनी सिद्धा जैसे सम्मान सूचक आदर सूचक उपलब्धि बोधक शब्दों का इस्तेमाल किया है।
राम ने शबरी के झूठे बेर खाए यह मिथक रामचरितमानस के रचना काल के बाद ही प्रचारित किया गया है। वैदिक संस्कृति में झूठा खाना व किसी को खिलाना पाप निंदनीय कर्म माना गया है । ऋषि मुनियों की दृष्टि में यह निंदनीय आयुर्वेद के दृष्टि में रोग कारक है। इस सम्बन्ध अनेको प्रमाण है यदि हम उनका उलेख यहां करें तो यह लेख बहुत विस्तृत हो जाए।
तुलसीकृत रामचरितमानस की चर्चा जरूरी करते हैं । वहां राम शबरी की भेंट के प्रसंग को तुलसी ने ऐसे व्यक्त किया है।
” कदं मूल फल सुरस अति दिए राम
कहुँ अपि प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि “
अर्थ शबरी ने राम लक्ष्मण को अत्यंत रसीले और स्वादिष्ट कंदमूल और फल श्री राम को दिए प्रभु ने बार-बार प्रशंसा करके उन्हें प्रेम सहित खाया।
यहां भी राम द्वारा झूठे बेर खाने की घटना का अनुमोदन समर्थन नहीं होता। हां लेकिन रामचरितमानस के इसी प्रसंग में तुलसी की जातिवादी मानसिकता नारी के प्रति उनके घृणित विचारों का दिग्दर्शन अवश्य होता है जिसे पढ़कर कोई भी निष्पक्ष निष्कपट राम ऋषि-मुनियों का वंशज तुलसी को संत नहीं स्वीकार कर सकता।
रामचरितमानस में एक नहीं ऐसे सैकड़ों चौपाई सोरठा छंद है। ऋषि मुनि कृत रचित ग्रंथों रचनाओं व साधारण पक्षपाती संप्रदाय मतवादी मनुष्य कृत में यही भेद होता है। कहां महर्षि वाल्मीकि जैसा आदि कवि जिसने रामायण में सीता शबरी अनुसूया मंदोदरी तारा रूमा जैसी आर्य वैदिक नारियों के लिए आदर सम्मान सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है । आदि कवि वाल्मीकि कृत रामायण में आप एक भी शब्द जातिवाचक या नारी के अपमान सूचक नहीं दिखा सकते। वही तुलसीकृत रामायण में ऐसे शब्दों की भरमार है उदाहरण के तौर पर शबरी के ही प्रकरण को लेते हैं।
तुलसी ने इसी प्रसंग में लिखा है।
अध ते अधम अति नारी।
तिन्ह मह मै मतिमंद अधारी।।
जाति ही अध जन्म महिम मुक्त कीन्हि असि नारी।
महामन्द मन सुख महसि ऐसे प्रभुहि बिसारी।।
अर्थात सबरी श्री राम से कह रही है प्रभु एक तो स्त्री वैसे ही अधम है उन में भी अधम स्त्री हूं। ऊपर से मैं मंदबुद्धि हूं। तुलसी कहते हैं जो नीच जाति की और पापों की जन्मभूमि थी ऐसी स्त्री को भी श्रीराम ने मुक्त कर दिया।
वाह रे तुलसीदास तुम्हारी बुद्धि पर तरस आता है।
जिस शबरी को राम ने खुद स्वयं तपस्विनी कहा है योग्य सद्गुण यम नियम विषयक वार्तालाप प्रश्नचर्या उसके साथ कि वाल्मीकि जी ने जिसे सिद्धा नारी कहा है ।उसको तुमने मंदबुद्धि पापी नीच जाति की घोषित कर दिया प्रभु श्री राम की भक्ति की आड़ में।
वाल्मीकि रामायण में शबरी का उल्लेख 2 कांडों में आता है प्रथम अरण्यकांड और दूसरा युद्ध कांड में वहां पर भी श्री राम की शबरी के विषय में कैसी उच्च आदर्श मानसिकता थी उसका परिचय हमें तब मिलता है जब श्री राम रावण का वध कर विभीषण का राज्यअभिषेक कर युद्ध में सहयोगी रहे वानर योद्धाओं को योग्यता अनुसार इनाम पारितोषिक खुद लंकापति विभीषण से दिला कर पुष्पक विमान मे माता सीता लक्ष्मण हनुमान सहित आकाश मार्ग मैं अयोध्या वापसी की यात्रा के दौरान। श्री राम माता सीता को आकाश से ही अरण्य कांड युद्ध कांड में घटित घटनाओं के स्थलों को उंगली से इशारा कर दिखाते हैं उन स्थलों को साथ ही वनवास के दौरान स्थित ऋषि मुनियों के आश्रमों को भी दिखाते हैं यह सहज मानव प्रकृति है आकाश से मनुष्य अंतरिक्ष को नहीं देखता पृथ्वी का ही अवलोकन करता है प्रभु श्रीराम ने भी ऐसा ही किया । जब तुगंभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित पंपा सरोवर के ऊपर पुष्पक विमान आता है तो श्री राम सीता से कहते हैं।
अस्यास्तीरे मया दृष्टा शबरी धर्मचारणी।
अत्र योजनबाहुश्च कबन्धो निहतो मया।।२६।।
(वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग ६९)
शब्दार्थः हे सीता सरोवर के तट पर धर्माचारिणी शबरी से मेरी भेंट हुई थी और इसी जंगल में मैंने विशाल भुजा वाले कबंध राक्षस को मारा था।
यहां भी श्री राम ने शबरी के लिए आदर्श शब्द का इस्तेमाल किया है। लेकिन तुलसीदास सबरी को मूढ मति नीच नारी सिद्ध करने पर तुले हुए हैं अलंकारिक साहित्यिक भाषा का दुष्ट प्रयोग करते हुए।
तुलसी यहीं नहीं रुके यद्यपि चर्चा प्रकरण के विरुद्ध हो जाएगी उन्होंने रामचरितमानस की एक चौपाई में लिखा है।
सापत ताडत पुरुष कहंता।
बिप्र पूज्य अस गाव हि संता।
पूजिअ बिप्र सील गुण हिना ।
सुद्र न गुन गन ग्यान प्रवीना।।
अर्थात शाप देता हुआ मारता हुआ कठोर वचन कहता हुआ भी कथित ब्राह्मण पूजनीय है ऐसा संत कहते हैं शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है और गुणवान युक्त और ज्ञान में निपुण शुद्र पूजनीय नहीं है।
ऐसी आर्य वैदिक संस्कृति ऋषि-मुनियों की मूल भावना के विरुद्ध लिखी गई चौपाइयों के कारण जातिवाद शोषण फला फूला। भला जो मधुर नहीं बोलता कठोर वचन बोलता है वह ब्राह्मण कैसे महाभारत मे तो मीठा मधुर गंभीर बोलने वाले को ही पंडित ब्राह्मण कहा गया है। और जो गुणवान है शिक्षित है तपस्वी है वह नीच शूद्र अर्थात अनपढ़ कैसे।
यही कारण रहा है तुलसी की रामचरितमानस को धार्मिक दस्तावेजी साक्ष्य बनाकर आज कुछ कथित नारी अधिकारों के संरक्षक वामपंथी बिंदी गैंग गांव गली नुक्कड़ के स्वघोषित बुद्धिजीवी कथित समाजवादी समतावादी अतीत में पेरियार जैसे वास्तविक दुर्बुद्धि कथित बुद्धिजीवी ज्योतिबा फुले जैसे लोगो ने आर्य संस्कृति के अमूल्य रतन महाराजा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को विदेशी अक्रांता दलित विरोधी जातिवादी नारी का उत्पीड़क घोषित कर दिया। सच्चाई कड़वी है बाबा तुलसी के कारनामो के कारण आज कुछ दलित परिवार दीपावली का पर्व नहीं मनाते। दीपक नहीं प्रज्वलित करते।
हमारी अनाधिकार चेष्टा तो देखीये हमने हनुमान की जाति खोजी आज शबरी को लेकर भी अजीबोगरीब दावे किए जाते हैं। आदिवासी उन्हें भीलनी अर्थात जनजाति की महिला बताते हैं तो कुछ लोग सबरी को स्वर्ण जाति की बताते हैं जातीय अस्मिता पहचान की मूर्खतापूर्ण लड़ाई बंदरबांट से तपस्विनी सबरी भी अछूती नहीं रही । प्रत्येक वर्ष फागुन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी की जयंती मनाई जाती है हालांकि वाल्मीकि रामायण में उनके जन्म को लेकर कोई उल्लेख वाल्मीकि जी ने नहीं किया है।
सबसे अधिक चिंताजनक तो यह है कथित दलित बुद्धिजीवियों के मुताबिक राम सब के नहीं है केवल खास वर्ग के हैं । जबकि प्रथम और अंतिम सत्य यही है राम मानव मात्र के है। आदर्श भाई आदर्श राजा आदर्श पति आदर्श मनुष्य राजा राम। तुलसी की रामायण सामाजिक विघटन करती है जबकि वाल्मीकि की रामायण देश को ही नहीं अखिल विश्व को मानवीय मूल्य की प्रेरक सीख देते हुए एकजुट करती है।
बोलो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की जय !
महर्षि वाल्मीकि की जय!
– आर्य सागर खारी