आज भारतीय सिनेमा को कई यादगार फिल्में देने वाले फिल्म निर्माता महबूब खान की 68 वीं पुण्यतिथि है.और आज हम आप को उन्ही के बारे कुछ ऐसी अनसुनी दस्ता बताने जा रहे हैं
हीरो बनने का देखा सपना,अस्तबल में करना पड़ा काम
महबूब खान ने इंडियन सिनेमा को मदर इंडिया जैसी कालजयी फिल्म दी.महबूब खान पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन बचपन से ही वो फिल्मों में एक्टिंग करने का सपना देखते आये थे.किताबी ज्ञान नहीं था इनके पास लेकिन कुछ कर दिखाने का ज़ज्बा और अलग पहचान बनाने की ललक थी. इनके परिवार वाले इसके सपनो खिलाफ थे, परिवार के आगे महबूब को अपने सपनो पर विराम लगाना पड़ा.
महबूब एक अस्तबल में घोड़े की नाल लगाने का काम करने लगे, लेकिन इनके सपने अब भी इनकी आँखों में उड़ान भर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात अस्तबल में आये एक शख्स से हुई और यही मुलाकात महबूब खान को बॉम्बे लेकर आई और भारतीय सिनेमा में आज महबूब खान सबसे बेहतरीन और कामयाब डायरेक्टर के तौर पर जाने जाते हैं. इनकी बनाई फिल्में मिसाल बन गई हैं. 1954 में इनका बनाया महबूब स्टूडियो में आज भी शूटिंग होती हैं.
16 साल की उम्र में उठानी पड़ी शादी की जिम्मेदारी
9 सितंबर 1907 को महबूब खान का जन्म बिलिमोरा गुजरात में हुआ.बचपन से ही महबूब को एक्टर बनने का शौक था, लेकिन पिता इसके खिलाफ थे.जब महबूब 16 साल के थे तब हीरो बनने के लिए घर से भाग कर बॉम्बे पहुंच गए थे,लेकिन उन्हें काम नहीं मिला. जानकारी मिलते ही उनके पिता उन्हें घर वापस लेकर आगये और घर से दुबारा न भागे और जिम्मेदारियों का बोझ महबूब पर डालने के लिए पिता ने एक बेहद छोटी सी लड़की से उनकी कम उम्र में शादी करा दी.और फिल्मो में काम करने का सपना छोड़ महबूब ने अपना घर बसा लिया. लेकिन उन्हें भी क्या पता था की उनकी किस्मत और उनकी मंजिल उनके लिए कुछ और तय कर रही है.
फिर एक बार किस्मत आजमाने बॉम्बे पहुंचे
प्रोडयूसर और फिल्मो में घोड़ा सप्लाई करने वाले नूर मोहम्मद से महबूब की मुलाकात उन्हें दोबारा बॉम्बे ले आई.जब नूर ने उन्हें अपने अस्तबल में घोड़े की नाल ठोकने का काम दिया तो बिना देर किये महबूब सिर्फ 3 रुपये लेकर घर से निकल गए.
फिल्मो में काम मिलने का किस्सा
एक बार महबूब घोड़े की नाल ठोकने साउथ की फिल्म के सेट पर गए. शूटिंग देख महबूब का एक्टर बनने का सपना फिर से ताजा हो गया. उन्होंने निर्देशक चंद्रशेखरसे ये बात बताई तो उनकी दिलचस्पी देख चंद्रशेखर ने तुरंत अस्तबल के मालिक नूर से महबूब को अपने साथ ले जाने की बात कही.
साइलेंट फिल्मो में बतौर असिस्टेंट काम करते थे
इस तरह चंद छोटे मोटे काम करने के बाद महबूब को साइलेंट फिल्मों के दौर में फिल्मे असिस्ट करने का मौका मिला. जब पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनने वाली थी तो आर्देशिर ईरानी ने महबूब को खान को एक्टर के तौर पर चुना,लेकिन कुछ लोगों के बहकावे में आकर उन्होंने फैसला बदल लिया. अब महबूब समझ चुके थे की फिल्मो में उन्हें बतौर हीरो काम मिलना मुमकिन नहीं. वह फिल्में लिखने में जुट गए और अपनी स्क्रिप्ट लेकर प्रोडयूसर के चक्कर लगाने लगे. आख़िरकार उनकी मेहनत रंग ले आईउन्हें पहली फिल्म अल हिलाल- 1935 (जजमेंट ऑफ अल्लाह ) डायरेक्ट करने का मौका मिला. इसके बाद महबूब को सागर फिल्म कंपनी में काम करने का मौका मिला, उन्होंने कई बेहतरीन फिल्मे बनाई.
मदर इंडिया फिल्म ने रच दिया इतिहास
सागर फिल्म के लिए महबू खान ने 1940 में फिल्म औरत बनाई औरत फिल्म हिट हुई.इसके बावजूद महबूब ने जब 1945 में खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू किया तो उन्होंने ये फिल्म दोबारा मदर इंडिया टाइटल के साथ बनाई और ये फिल्म भारतीय सिनेमा में इतिहास रच दी और साथ ही साथ महबूब के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म साबित हुई .मदर इंडिया भारत की पहली फिल्म है जिसे एकेडमी अवार्ड (ऑस्कर )में भेजा गया था.इस फिल्म को खूब तारीफें मिलीं,लेकिन सिर्फ एक वोट से ये फिल्म ऑस्कर जितने से रह गई.
मदर इंडिया की कामयाबी के बाद महबूब खान ने 1962 में सन ऑफ इंडिया बनाई,लेकिन ये फिल्म एक बड़ी फ्लॉप फिल्म साबित हुई.और दुर्भाग्य से ये महबूब की आखिरी फिल्म रही.और 28 मई 1964 को हार्ट अटैक से महबूब खान की मौत हो गई.इस समय महबूब अपने फिल्म की तैयारी कर रहे थे जो अधूरी रह गई.लेकिन महान फिल्म मेकर मेहबूब खान को लोग सदियों तक याद रखेंगे.