मनमोहन देसाई बॉलीवुड के महानतम फ़िल्म निर्देशकों में से एक हैं। छलिया, सच्चा झूठा, आ गले लग जा और रोटी जैसी हिट फिल्में दे चुके देसाई ने अमिताभ के साथ ढेरों फिल्में की। उनकी जोड़ी हिट मशीन बन चुकी थी। अमिताभ के करियर की कई यादगार फिल्में देसाई ने ही डायरेक्ट की थी।
शबाना और मनमोहन देसाई ने परवरिश में किया था काम
1977 में रिलीज हुई परवरिश में मनमोहन देसाई ने अमिताभ के साथ नीतू सिंह और विनोद खन्ना के साथ शबाना आज़मी की जोड़ी को प्रस्तुत किया था। यह फ़िल्म दीवाली के अवसर पर प्रदर्शित हुई थी और ब्लॉकबस्टर साबित रही थी। इस वर्ष मनमोहन देसाई की 4 फिल्में रिलीज हुई थी।
आखिर कैसे ‘अमर अकबर एंथोनी’ में हुई शबाना की एंट्री
परवरिश की शूट लगभग खत्म हो चुकी थी और मनमोहन देसाई ‘अमर अकबर एंथोनी’ के प्री-प्रोडक्शन में लगे हुए थे। उस फिल्म में उन्होंने अमिताभ के अपोजिट परवीन बॉबी और ऋषि कपूर के अपोजिट नीतू सिंह को कास्ट कर लिया था। देसाई उस फ़िल्म में विनोद खन्ना के किरदार को बिना किसी फीमेल एंगल के दिखाना चाहते थे।
मनमोहन देसाई पहली दफा किसी फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले थे। वे एक दिन शबाना के पास गए और उन्हें अमर अकबर एंथोनी का आफर देते हुए कहा कि, “इस फ़िल्म में तुम्हारे लिए कोई बड़ा रोल नही है लेकिन वो विनोद खन्ना मेरी जान खा जाएगा। वो कहेगा कि फ़िल्म में अमिताभ और ऋषि के लिए हेरोइन है तो मेरे लिए क्यों नही। इसलिए मैं जबदस्ती तुम्हें इस फ़िल्म में घुसा रहा हूँ।”
फ़िल्म को हो चुके हैं 45 साल फिर भी शबाना आज़मी को ऐसा लगता है मानो कल की बात हो
शबाना को यह अच्छा लगा कि मनमोहन देसाई ने उन्हें बातों में घुमाने के बजाय सीधे बतला दिया कि फ़िल्म में छोटा सा रोल है और लेने की वजह क्या है। दर्शक भी हमेशा से पर्दे पर नायक-नायिका की जोड़ी देखना चाहते हैं। भले ही नायिका का किरदार बेहद छोटा हो लेकिन हीरो है तो हेरोइन उनको चाहिए ही। शबाना को परवरिश में देसाई के साथ काम करके बहुत मज़ा आया था। उन्हें आज भी अमर अकबर एंथोनी फ़िल्म की शूटिंग के दिन याद हैं।
यह फ़िल्म ब्लॉकबस्टर साबित रही थी। परवरिश की तरह ये फ़िल्म भी 1977 में रिलीज हुई थी। इसका एक गीत याद आता है, “हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें।” इसके साथ फ़िल्म के दूसरे गाने भी जबरदस्त थे। ऋषि और नीतू की कॉमेडी लोगों को खूब पसंद आई थी।
फ़िल्म का यह सीन रहा चर्चा में
फ़िल्म के एक सीन में तीन बेटे एक साथ अपनी माँ को रक्त देते हैं। यह सीन फ़िल्म के शुरुआत में आता है। आज के दौर में सोशल मीडिया में इस सीन का मजाक बनाया जाता था। लेकिन ऐसे सीन को सोचकर पर्दे पर दिखाना बहुत बड़ी बात थी। इस सीन के माध्यम से निर्देशक बहुत कुछ कहना चाह रहे थे जो उस समय लोग समझे। अब तो हर चीज़ में मीनमेख निकालने की आदत सी हो गई है। या यूं कहें कि दर्शक जाग उठे हैं।