इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, पहले वो जो मुंह में सोने की चम्मच लेकर पैदा होते हैं यानी कि भरे-पूरे खानदान में। दूसरे वो जिनका जन्म गरीबी और सामाजिक भेदभाव को झेलने के लिए होता है।
बात करें भारत की तो इस देश में दूसरे प्रकार के लोगों की जनसंख्या ज्यादा है। हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मेहनत के दमपर अपनी किस्मत को बदलने का प्रयास करते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक व्यक्ति के विषय में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने सफर की शुरुआत महज़ 45 रुपये की नौकरी से की थी और जब उनका देहांत हुआ तब वे करोड़ों की कंपनी के मालिक थे।
छोटे से गांव में जन्में लक्ष्मण
इस शख्सियत का नाम लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर था। इनका जन्म 20 जून, 1869 को मैसूर के पास बेलगांव जिले के एक छोटे से गांव गुरलाहोसुर में हुआ था। लक्ष्मण बचपन से ही पढ़ाई में ढीले थे। यही कारण था कि उनके पिता ने उनका दाखिला मुम्बई स्थित जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में करवा दिया था। इस विद्यालय में पढ़ाई के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि उनकी आंखों में कमी है जिसकी वजह से उन्हें रंगों को पहचानने में काफी दिक्कत होती थी।
45 रुपये की नौकरी से की शुरुआत
अपनी इस कमी से उबरने के लिए लक्ष्मण ने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी। धीरे-धईरे जब वे बड़े हुए तो उनकी नौकरी मुंबई के ‘विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट’ में लग गई। यहां वे अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए थे। यहां उन्हें 45 रुपये प्रति माह के हिसाब से दिये जाते थे।
इस दौरान वे कॉलेज के कारखाने में जाकर मशीनों के विषय में जानकारी जुटाते थे। उन्हें बचपन से ही टेक्नोलॉजी के विषय में जानना अच्छा लगता था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लक्ष्मण अपने जीवन में हमेशा से कुछ बड़ा करना चाहते थे। लेकिन हर बार आइडिया और संसाधन की कमी उन्हें कुछ बड़ा करने से रोक लेती थी।
‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ ने खोला साइकिल स्टोर
एक दिन वे साइकिल से अपने कॉलेज की तरफ जा रहे थे। इस दौरान उन्होंने रास्ते में साइकिल की एक नई दुकान खुलते देखी। बस फिर क्या था उन्होंने फैसला किया कि वे भी साइकिल की दुकान खोलेंगे। इसके लिए उन्होंने अपने भाई रामुअन्ना से मुलाकात की और उन्हें साइकिल के बिजनेस के विषय में बताया। 1888 में लक्ष्मण ने अपने भाई के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से एक साइकिल स्टोर खोला। कॉलेज से फ्री होकर वे अपनी दुकान पर आ जाते, यहां वे साइकिलों की रिपेयरिंग करते साथ-साथ लोगों को साइकिल चलाना भी सिखाते।
नौकरी से दिया इस्तीफा
जानकारी के अनुसार, कॉलेज से ज्यादा समय वे अपनी दुकान में देते। यही कारण था कि स्कूल प्रबंधन ने उनकी जगह किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करने का फैसला किया। इस बात का लक्ष्मण को पता चला तो उन्होंने बिना कुछ कहे त्यागपत्र प्रधानाचार्य के सामने रख दिया और नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
मशीनों का निर्माण शुरु किया
इसके बाद उन्होंने साइकिल के बिजनेस से जो पूंजी बचाई थी उससे चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाने का कारखाना खोला। लक्ष्मण ने इसकी शुरुआत छोटे स्तर पर की थी। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन उनके सपनों के आड़े आ गई नगर पालिका। बताया जाता है कि नगर पालिका के प्रतिबंधनों की वजह से उन्हें अपना यह कारखाना बंद करना पड़ा।
इसके बाद वे एक बार फिर साइकिल के बिजनेस पर निर्भर हो गए। हालांकि, तब तक ज़माना मोटरसाइकिल और कार की तरफ बढ़ रहा था। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे अपने पुराने बिजनेस को एक बार फिर से शुरु करेंगे।
लोन से की थी शुरुआत
उन दिनों लक्ष्मण की किस्मत भी उनका साथदे रही थी। अचानक किसी कार्यक्रम में उनकी मुलाकात औंध के राजा से हो गई। उनसे मिलकर लक्ष्मण ने अपने आइडिया के विषय में उन्हें बताया। इसपर उसने लक्ष्मण को कंपनी की शुरुआत के लिए महाराष्ट्र में जमीन और 10 हजार का लोन देने के लिए हामी भर ली।
किर्लोस्कर ने रचा इतिहास
यहीं से शुरु हुआ किर्लोस्कर का सफर। सबसे पहले लक्ष्मण ने अपने कारखाने के लिए 32 एकड़ जमीन खरीदी। इसके बाद वहां अपना काम शुरु किया। इस कारखाने में उन्होंने खेती-बाड़ी से जुड़े उपकरणों का निर्माण प्रारंभ किया। हालांकि, इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा जिनमें मार्केटिंग, सेल्स आदि शामिल थीं। लेकिन लक्ष्मण ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मेहनत से किर्लोस्कर नामक इस कंपनी को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।
इसके बाद उन्होंने कई राज्यों में किर्लोस्कर के कारखानों की शुरुआत की। इनमें बंगलौर, पुणे आदि शहर शामिल थे।
1956 में हुआ देहांत
कृषि के क्षेत्र में औद्योगिक क्रांति लाने वाले लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने 26 सितंबर 1956 को देह त्यागा था। इसके बाद उनकी कंपनी को उनकी आगे की पीढ़ियों ने चलाया।
गौरतलब है, आज किर्लोस्कर ग्रुप के पास 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति है।