कारगिल विजय दिवस के दिन हम इस युद्ध में शहीद हुए जवानों को याद करते है। लेकिन कई वीर सैनिक ऐसे भी थे जो वीरता से लड़े और आज अपनी वीर गाता सुनाने के लिए हमारे बीच मौजूद है। उन्ही में से एक है कारगिल वॉर के वीर योगेंद्र सिंह यादव जिनकी जान महज एक सिक्के ने बचा लो थी। इन्होंने बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए हिल टॉप पर भारत की शान तिरंगा को लहरा कर साबित कर दिया कि भारत वीरों को भूमि है। आज उस घटनाक्रम को पूरे 23 साल हो चलें है। लेकिन उसकी यादें आज भी उनके जहन में जिंदा है जिसे यादकर वो खुद को गौरवांवित महसूस करते है।
कारगिल युद्ध याद करते हुए योगेंद्र बताते है कि वो 20 मई 1999 का दिन कभी नही भूल सकते। उस समय उनकी उम्र महज 19 साल थी और ड्यूटी को ज्वाइन किए उन्हे सिर्फ ढाई साल हुए थे। में अपनी शादी जो 5 मई को थी। उसके लिए छुट्टी लेकर गांव आया था। लेकिन 20 मई को मुझे हेडक्वार्टर से बुलावा आया। मुझे बताया गया की मेरी बटालियन को द्रास सेक्टर तोलोलिंग पहाड़ी फतह करने का टास्क दिया गया है। जो पाकिस्तान के कब्जे में थी।
मेरी बटालियन ने चोटी तक पहुंचने के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। जिसमें 22 फौजी शामिल थे। मेरे साथ देते हुए मेरी पलटन ने 5 पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया था। जिससे हमारा रास्ता साफ हो सके। लेकिन इसके जवाब में पाकिस्तानी फौज ने मेरी बटालियन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन कैसे भी करके में अपने 7 जाबांज जवानों के साथ हिल टॉप तक पहुंच गया था। दोनो तरफ से फायरिंग हो शुरू हो चुकी थी। लेकिन हमारे पास बारूद बहुत कम मात्रा में मौजूद था। इसलिए हमने उन्हें चकमा देने के लिए अपनी साइड से फायरिंग बंद कर दी। जिससे पाक फौज असमंझस में पड़ गई।
उन्हे ये लगा कि हमारी बटालियन के सारे जवान मारे गए है। और अपने प्लान के मुताबिक हमने अचानक से उनपर हमला करके कई पाक जवानों को ढेर कर दिया। जिनमें से कुछ जवान अपनी जान बचाकर वहां से भाग गए। वहां हिल टॉप पर पहुंच कर हमने तिरंगा फहरा दिया और जीत का जश्न मनाने लगे।
लेकिन हमारी खुशी ज्यादा देर तक न टिक पाई। क्योंकि करीब 35 मिनट बाद पाक फौज ने हमार दुबारा हमला कर दिया। जिसमें आमने सामने को जंग शुरू हो गई। लेकिन पाक सैनिक अधिक मात्रा में थे। जिसके चलते मेरे सभी साथी मेरी आंखो के सामने मारे गए। जिसमें में भी लहुलुहान होकर जमीन पर गिर पड़ा था। मेरे हाथ पैरों में कई गोलियां लग चुकी थी। हम सबके ढेर होने का पाक सैनिकों ने खूब फायदा उठाया। उन्होंने मेरे साथियों के पार्थिव शरीर के साथ बर्बरता करना शुरू कर दिया। शाहिद सैनिकों पर बेहिसाब गोलियां दागी गई। उनको बूटों से बुरी तरह से कुचला गया। में बेसहारा जमीन पर पड़ा सब देख रहा था और मेरी आंखो से आसू चल रहे थे।
तभी उनमें से एक सैनिक मेरे पास आया और उसने मेरे हाथ पैरों पर गोलियां दाग दी। जिससे मुझे बहुत दर्द हुआ। उसी समय उसने एक गोली मेरे सीने में भी मार दी। लेकिन मेरी पॉकेट की जेब में कुछ सिक्के पड़े थे। उन सिक्कों में भगवान बनकर मेरी जान बचा ली। जब मुझे गोली पड़ी तब मुझे लगा था की अब में जिंदा नहीं बचूंगा। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने मेरी जान बचा ली थी।
हाथ में गोली लगने की वजह से मेरा हाथ सुन्न पड़ गया था। जिसे मैंने उखाड़ने की भी कोशिश की लेकिन मेरे शरीर में ज्यादा ताकत नहीं बची थी। तो ये काम न कर सका। इस समय मुझे अहसास हो गया था कि अब मेरी मौत नही हो सकती। जिसके बाद मैने अपने दर्द को भूलकर पाक फौज से बदला लेने की ठान ली। हिम्मत जुटाकर मैंने रेंगना शुरू कर दिया और अपने साथियों के पास गया। लेकिन अफसोस मेरे सभी साथी मारे गए थे। उन्हें ऐसे देख में बहुत रोया। उस समय मेरे पास सिर्फ एक ही ग्रेनेड बचा था। मेरे अंदर इतनी ताकत नहीं थी कि में उसे खोलकर फेंक सकूं। लेकिन फिर फिर भी मैंने उसे खोलने की कोशिश की। लेकिन वो खोलने के दौरान मेरे पास हो फट गया। हालंकि में उससे बच गया था।
इसके बाद मैने अपने साथी की राइफल उठाकर ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू कर दी और एक नाले से लुढ़कते हुए में नीचे आ गिरा। उस समय मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नही था। लेकिन मैंने कैसे भी करके खुद को भारतीय सेना के बेस कैंप तक पहुंचा दिया। जहां पहुंचकर मैंने अधिकारियों को पाकिस्तानी फौज की पूरी प्लानिंग के बारे में बता दिया और महज आधे पैकेट बिस्किस्ट पर में 72 घंटे जिंदा रहा था। तीन दिन बाद जब मुझे होश आया तो पता चला कि मेरी बटालियन ने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया है और वहां तिरंगा फहरा कर कारगिल युद्ध में विजय हासिल कर ली है। ये जानकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
तो दोस्तो ये थी हमारे कारगिल युद्ध के वीर जवान योगेंद्र यादव की कहानी। आपको पढ़कर कैसा लगा कमेंट कर जरूर बताएं।