यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वो मरने से नहीं डरता तो या तो वो झूठ बोल रहा है या वो गोरखा है. ये शब्द पूर्व भारतीय सेनाअध्यक्ष सैम मानेकशॉ के है. आपको बता दें गोरखा रेजीमेंट के सफाई हमेशा से भारतीय सेना की आन बान और शान रहे हैं. क्योंकि जब भी भारत किसी आपात स्थिति में आता है तो सबसे पहले गोरखा रेजिमेंट के सिपाहियों को ही याद किया जाता है. क्योंकि उनके बहादुरी के किस्से भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में मशहूर है.
दरअसल गोरखा रेजीमेंट के सिपाही दुनिया के सबसे खतरनाक और जांबाज सिपाहियों में गिने जाते हैं.आज के इस खास लेख में हम भारतीय सेना के सबसे खास अंग गोरखा रेजीमेंट के बारे में आपको बताने जा रहे हैं इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें…
गोरखा रेजिमेंट को माना जाता है बलिदान का दूसरा नाम
जब भी भारत किसी आपात स्थिति में आता है तो सबसे पहले गोरखा रेजीमेंट के सिपाहियों को ही याद किया जाता है दरअसल गोरखा रेजीमेंट के सिपाहियों को बलिदान का दूसरा नाम कहा जाता है क्योंकि इनकी बहादुरी और उनकी जाबाजी के आगे दुश्मन मैदान छोड़कर भाग जाते हैं.
आपको जानकर खुशी होगी या हो सकता है आपको हैरानी भी हो. वर्ल्ड वॉर टू के दौरान ब्रिटिश सरकार ने गोरखा रेजीमेंट को ही हिटलर नाजी सेना से लड़ने भेजा था. वहां गोरखा रेजीमेंट ने अपने शौर्य का जो प्रदर्शन किया था. उसके किस्से आज भी दुनिया भर में सुनाए जाते हैं.
आपकी जानकरी के लिए बता दें की गोरखा रेजिमेंट हमारी भारतीय थल सेना का एक अंग है. जो नेपाली मूल के लोगों को मिलाकर बनाई गयी है.
काफी पुराना रहा है गोरखा रेजिमेंट का इतिहास
साल 1809 में गोरखा सिपाहियों को पंजाब के राजा रंजित सिंह ने पहली बार अपनी सेना में शामिल किया था. यह गोरखा सिपाहियों के लिए पहला मौका था जब वह नेपाल से निकल कर किसी दूसरे देश की सेना में शामिल हो रहे थे. इसके बाद साल 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखा सिपाहियों को ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल कर लिया.
दरअसल हुआ यूँ था कि साल 1814 में ईस्ट इंडिया कंपनी अपने व्यापार को तिब्बत तक फैलाना चाहती थी. उस समय ब्रिटिश सिपाहियों को रोकने के लिए गोरखा सिपाहियों ने पुरे 2 साल तक युद्द किया. ज
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इस बात से ईस्ट इंडिया कंपनी उनसे बहुत इम्प्रेस हो गयी थी. क्योंकि संख्या में बहुत कम होने के बावजूद गोरखा सिपाही ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दे रहे थे. उस समय गोरखा सिपाहियों का शोर्य देखकर पूरी दुनिया हैरान रह गयी थी. इसलिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अपनी आर्मी में भर्ती कर लिया था. तब से लेकर आज तक गोरखा रेजीमेंट भारत की शान बने हुए है.
इनके पास होता है खुकरी नाम का खास हथि#यार
बता दें गोरखा रेजिमेंट के सिपाही अपने खास खुकरी ( Khukari) की वजह से भी पूरी दुनिया में फेमस है. जो की एक नेपाली शब्द होता है. खुकरी 12 इंच का होता है. जिसे गोरखा रेजिमेंट के सिपाही युद्ध के दौरान इस्तेमाल करते है. खुकरी के बारे में एक कहावत बहुत मशहूर है कि जब कोई गोरखा अपनी खुकरी निकाल लेता है तो दुश्मन को हराये बिना नहीं लौटता.
गोरखा रेजिमेंट ने भारत को जितवाए है कई युद्ध
गोरखा रेजिमेंट के बहादुरी और निडरता के किस्से बहुत पुराने है. अपनी बहादुरी और निडरता के बदौलत गोरखा रेजिमेंट भारत को कई युद्ध जितवा चुकी है. जिसमें 1947-48 का उरी सेक्टर (URI SECTOR ), 1962 का भारत चीन युद्ध और 1965-71 के भारत पाकिस्तान युद्ध शामिल है. इतिहास गवाह है, जब भी गोरखा किसी युद्ध में उतरते है तो वो दुश्मनों पर अपनी अलग ही छाप छोड़ते है. फिलहाल भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में 40 हजार से भी ज्यादा गोरखा सिपाही मौजूद है.
जूतों में लगाई जाती है घोड़े की नाल
गोरखा रेजिमेंट के लिए अलग तरह के जूतें तैयार किये जाते है. ये जूते इतने भारी होते है कि कोई आम इंसान इन्हें पहनकर चल ही नहीं सकता. दरअसल इनके जूतों में घोड़े की नाल को 13 मोटी मोटी किलों से जड़ा जाता है. जिससे इनके जूतें बेहद खास हो जाते है. बता दें हर साल लगभग 12 सौ से लेकर 15 सौ तक गोरखा सिपाही भारतीय थल सेना में शामिल किये जाते है.
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