अमिताभ की फ़िल्म ‘शराबी’ के मुंशी फूलचंद तो याद ही होंगे। या फिर राजेश खन्ना की अमर प्रेम के नटवरलाल जो गुपचुप में इमली पानी नही बल्कि शराब डालकर खाते थे। यहां बात हो रही है जाबड़ कला के धनी अभिनेता ओम प्रकाश की। वे ऐसे कलाकार थे जो भिन्न-भिन्न के रोल करते थे और अभिनय में जान इतनी की जो किरदार निभाते, लोग उन्हें वही समझ लेते। कभी कॉमेडी की तो कभी विलन भी बने। दर्शकों को हँसाया और साथ में रुलाया भी। ओम प्रकाश जी डायलॉग डिलीवर करने की अपनी एक अलग टेक्निक थी जिसके कारण वे ज्यादा फेमस हुए। (Om Prakash chibber biography in hindi )
रामलीला में बनते थे माता सीता
ओम प्रकाश छिब्बर का जन्म 19 दिसंबर 1919 को जम्मू में हुआ था। ओम प्रकाश के पिता बाहत बड़े किसान थे। उनके पास जम्मू के अलावा लाहौर में भी एक बड़ा बंगला था। उनका ध्यान शुरू से थिएटर की तरफ रहा था। बचपन मे गांव मोहल्ले में होने वाले रामलीला में उन्हें माता सीता की भूमिका निभानी पड़ती थी। वे बेहद गोर और गोल मुख के थे इस कारण उन्हें साड़ी पहनकर महिला किरदार धराया गया था। ओमप्रकाश को इससे बहुत कुछ सीखने को मिला।
शादी में लोगों को किस्से सुना रहे थे और मिल गई पहली फ़िल्म
1937 में ओम प्रकाश ने आल इंडिया रेडियो जॉइन किया। तब उन्हें 25 रुपये की मासिक वेतन प्राप्त होती थी। उस रेडियो प्रोग्राम को खूब पसंद किया गया। उनकी लोकप्रियता पूरे पंजाब में होने लगी। उन दिनों उन्हें ‘फतेह दिन’ के नाम से जाना जाता था। ओम प्रकाश किस्से सुनाने में उस्ताद थे। एक दिन वे शादी अटेंड करने पहुंचे थे। उन्होंने अपने बातों से लोगों को अपनी ओर खींच लिया। देखते ही देखते शादी में पधारे आधे से ज्यादा मेहमान उनकी बातें सुनने के लिए इकट्ठा हो गए। उन्हें तो मज़ा आने लगा। उस शादी में महशूर फिल्मकार दलसुख पंचोली भी पहुंचे थे। उन्होंने ओम प्रकाश को देखा और उनकी कला को पहचान गए। दलसुख ने उन्हें अपने लाहौर आफिस बुलाया और दासी फ़िल्म के लिए 80 रुपये मेहनताना देकर साइन कर लिया।
लगभग सभी बड़े सितारों के साथ किया काम
पांचोली साहब की फ़िल्म से उन्हें थोड़ी बहुत पहचान मिली। वे काम मे लगे रहे और पार्टीशन हुआ। ओम प्रकाश पाकिस्तान से दिल्ली चले आये। उनकी मुलाकात बलदेव राज चोपड़ा से हुई जो उन दिनों पत्रकार थे और फिल्मों के विषय मे लिखते थे। बलदेव राज चोपड़ा ने ही ओम प्रकाश को फिल्मी सफर जारी रखने का सलाह दिया। थोड़े दिन जूते घिसने के बाद ओम प्रकाश को लखपति नामक फ़िल्म में विलन का रोल मिल गया। उसी वर्क के कुछ सालों बाद ही उन्होंने उस दौर के सभी बड़े सितारों के साथ काम किया। दिलीप कुमार के साथ आज़ाद, राज कपूर के साथ सरगम और किशोर दा के साथ हावड़ा ब्रिज उनकी सर्वोत्तम कृतियों में से एक है।
जब फ़िल्म में दिलीप कुमार के ऊपर भारी पड़ गए
अपने फिल्मी करियर में 307 फिल्मों में काम कर चुके ओम प्रकाश के अभिनय से दिलीप साहब को भी डर लगा था। ट्रेजडी किंग दिलीप साहब के अभिनय प्रतिभा से वाकिफ हैं। कई समीक्षकों ने लिखा था कि ट्रेजडी किंग को अगर किसी ट्रेजडी सीन में कोई टक्कर दे सकता है तो वह सिर्फ ओम प्रकाश ही थे। 1970 में आई दिलीप साहब की फ़िल्म गोपी में ओमप्रकाश भी बड़ी भूमिका में थे। दिलीप साहब ने ही कहा था, “मैं अपने अभिनय करियर में केवल एक बार डरता था और यह गोपी के दौरान था जब ओम प्रकाशजी के प्रदर्शन ने मुझ पर भारी प्रभाव डाला।” कई क्रिटिक ने लिखा था कि ओमप्रकाश जी के कारण दिलीप कुमार की एक्टिंग थोड़ी सी फीकी नज़र आने लगी थी।