गज़ल किंग ‘जगजीत सिंह’ किसी परीचय के मोहताज नही. ‘होठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर करदो’ जैसी गज़ल देने वाले जगजीत सिंह ने अपनी जान से भी ज्यादा संगीत से प्रेम किया था. ऐसे मे एक घटना के बाद उन्होने गायिकी से मुंह मोड़ लिया था.
कंहा से हुई थी करियर की शुरुआत
जगजीत सिंह के पिता, अमर सिंह धिमान चाहते थे कि जगजीत सिंह इंजिनीयरिंग कि पढ़ाई करें, इसी के साथ साथ वे संगीत के लिए भी उन्हे प्रोत्साहन देते थे. जगजीत सिंह ने अपने करियर की शुरुआत आकाशवाणी मे संगीत कंपोज़ करके की थी. अपने करियर के भागदौड़ के बीच उन्हे कई फिल्मों मे लीड रोल भी मिले पर उन सभी को ठुकराकर जगजीत सिंह ने केवल अपने सगींत को पकड़ कर रखा.
लोकप्रियता का शिखर
साल 1982 मे जब जगजीत सिंह के ईवेंट ‘लाइव एट रॉयल एलबर्ट हॉल’ कि टिकट जब 3 घंटों म बिक गयीं, तब मालूम पड़ा कि जगजीत सिंह लोगों के दिलों मे राज करते है.
बेटे कि मौत ने तोड़ी हिम्मत
एक सड़क हादसे मे बेटे विवेक सिंह को खोकर जगजीत सिंह अपनी हिम्मत छोड़ चुके थे, उन्होने तब गायकी से भी मुंह मोड़ लिया था. जगजीत सिंह ने 6 महीने तक गायकी नही की, जब्की उनकी पत्नी चित्रा ने हमेशा के लिय़े गायकी छोड़ने का फैसला किया था.
करी दमदार वापसी
बेटे की मौत का गम, उनकि वापसी के बाद आये गानों मे साफ नज़र आता था. उनके दिल का दर्द उनके काम मे साफ नज़र आता था. जगजीत सिंह ने ‘सजदा’ एलबम मे ‘लता मंगेशकर’ के साथ वापसी करी.
उसके बाद उन्होने ‘जावेद अख्तर’, ‘गुलज़ार’ और ‘सरदार जाफरी’ के साथ ‘कहकशां’, ‘मरसिम’ और ‘सिलसिला’ जैसे गाने गाये.
23 सितम्बर 2011 को गजल किंग जगजीत सिंह को ब्रेन ट्यूमर हुआ और वे करीबन 2 हफ्ते कोमा मे रहे. जिसके बाद उनका देहांत हा गया. सम्मान के तौर पर भारत सरकार ने उनके सम्मान मे डाक टिकट जारी किये थे.