मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी है। मनोज कुमार बेहद हैंडसम और रोमांटिक दिखते थे। जब वे कैमरे के सामने पहली दफा आये तो उन्हें बूढ़े भिखारी का रोल मिला। मनोज कुमार बॉलीवुड में भारत कुमार के नाम से जाने जाते हैं। उनके द्वारा बनाई गई देशभक्ति से लबरेज़ फिल्मो ने लोगों के अंदर राष्ट्र के प्रति सच्ची श्रद्धा जागृत करने में सहायता की। निर्देशक लेखराज भाखरी, मनोज कुमार के बुआ के लड़के थे। वे एक काम से दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने मनोज कुमार से कहा कि तुम तो हीरो की तरह दिखते हो। हीरो क्यों नही बन जाते। तब मनोज कुमार ने जवाब में कहा , “तो बना दो हीरो।”
फ़िल्म जगत में लोगों की जिंदगियां घिस जाती है
कुछ दिनों के बाद मनोज कुमार मुम्बई चले आये। वे 6 महीने से भी ज्यादा खाली बैठे रहे। उन्हें किसी भी फ़िल्म में काम नही मिल रहा था। उन्होंने लेखराज भाखरी से कहा ऐसा कब तक चलेगा। तब भाखरी साहब ने मनोज कुमार को फ़िल्म जगत का कड़वा सच बताया, “अभी तो तुम्हारे जूते तक नही घिसे हैं। वरना इस फ़िल्म जगत में तो लोगो की जिंदगियां घिस जाती हैं।” यह सुनकर मनोज कुमार शान्त और सन्न रह गए। भाखरी साहब ने अपनी फिल्म फैशन में मनोज कुमार को एक बूढ़े भिखारी का छोटा सा रोल दिया।
इसके बाद मनोज कुमार स्ट्रगल करते रहे। 1960 में आई कांच की गुड़िया में मनोज कुमार पहली बार मुख्य भूमिका में दिखे। जिसके बाद उन्होंने दो बदन, हनीमून, साजन, सावन की घटा, पत्थर के सनम, गुमनाम और वो कौन थी जैसी सुपरहिट फिल्में की। इन सब फिल्मों से मनोज कुमार की एक रोमांटिक अभिनेता के रूप में छवि बन चुकी थी।
भगत सिंह की मां की गोद मे सिर रखकर रो पड़े
निर्देशक एस राम शर्मा ने शहीद भगत सिंह के ऊपर फ़िल्म बनाने की बात कही जिसमे मनोज कुमार मुख्य भूमिका में होंगे। इस फ़िल्म ने मनोज कुमार की छवि को बदल के रख दिया। इस फ़िल्म के सिलसिले में वे भगत सिंह के परिवार से भी मिलने पहुंचे थे। जब फ़िल्म की टीम चंडीगढ़ में थी तब इन्हें मालूम हुआ कि भगत सिंह की मां को चंडीगढ़ के किसी अस्पताल में भर्ती किया गया है। मनोज कुमार ने उनसे मिलने की इच्छा जताई।
भगत सिंह के भाई उन्हें अपने माँ तक ले गए। और ले जाते ही पूछा, “माँ ये वीरे की तरह नही दिखते?” तब भगत सिंह की मां ने मुस्कुराते हुए कहा, “काफी हद तक”। उस दिन मनोज कुमार भगत सिंह की माँ के गोद मे सिर रखकर रो पड़े। मनोज कुमार उस पल को बेहद सौभाग्यशाली मानते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री की वजह से बने भारत कुमार
1 जनवरी 1965 को शहीद रिलीज हुई तो देश में युद्ध का माहौल चल रहा था। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। फ़िल्म ने लोगों के अंदर राष्ट्रभावना जगाया। इस फ़िल्म को प्रधानमंत्री लाल बाहदुर शास्त्री ने भी देखा। पीएम साहब ने मनोज कुमार को जय जवान जय किसान नारे के ऊपर एक फ़िल्म बनाने का आग्रह किया। यह फ़िल्म उन लोगों के लिए सीख होगी जो अपने देश की धरती छोड़कर विदेशों में जा बसे हैं।
उपकार की सफलता के बाद बनाई कई देशभक्ति फिल्में और बन गए भारत कुमार
शास्त्री जी के आईडिया पर मनोज कुमार ने तुरंत ही काम करना शुरू कर दिया। वे दिल्ली से मुंबई की तरफ ट्रैन से जा रहे थे। उसी सफर में मनोज कुमार ने उपकार की कहानी लिख दी। 1967 में उन्होंने उपकार बनाई जिसका निर्देशन भी किया। इसके बाद उन्होंने पूरब और पश्चिम (1970) बनाकर लोगों के भीतर देशभक्ति का जज़्बा जगाया।
फ़िल्म के गीत ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’ आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है। 1981 में आई क्रांति बिग बजट फ़िल्म थी। इसके लिए उन्होंने अपने घर तक को गिरवी पर रख दिया था। यह फ़िल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इस तीनों ही फिल्मों में उनके किरदार का नाम भारत ही था। इसी भारत नाम के कारण लोग उन्हें भारत कुमार के नाम से पहचानने लगे थे। 1999 में उन्होंने निर्देशक के रूप में आखिरी फ़िल्म ‘जय हिंद’ बनाई थी। 1989 में उन्होंने ‘क्लर्क’ फ़िल्म का निर्देशन किया था जिसमें उनके किरदार का नाम भारत ही था।