कहा जाता है कि सफलता एक दिन में नहीं मिलती। उसके लिए ना जाने कितनी रातें और अनगिनत दिन खपाने पड़ते हैं। इस सबके बीच व्यक्ति के लिए जरुरी होता है आत्मविश्वास। यदि किसी व्यक्ति को खुद पर भरोसा होता है तो वह अपनी मेहनत और लगन के दमपर लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है।
आज हम आपको ऐसे ही एक शख्स के विषय में बताने जा रहे हैं जिसने निश्चय कर लिया था कि एक ना एक दिन वह सफल होकर ही दम लेगा।
हम बात कर रहे हैं दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनी डाबर के मालिक डॉ. एस के बर्मन की। इन्होंने अपने घर से आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स बनाने की शुरुआत की थी।
छोटे से क्लीनिक से हुई थी शुरुआत
बता दें, कलकत्ता के निवासी डॉ. एस के बर्मन ने साल 1984 में अपने छोटे से क्लीनिक से आयुर्वेदिक हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स की शुरुआत की थी। उन दिनों भारत हैजा और मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहा था जिसका इलाज भी संभव नहीं था। यही कारण था कि लोगों को आयुर्वेदिक नुस्खों से राहत पहुंचाने के उद्देश्य से डॉ. बर्मन ने डाबर नामक कंपनी की स्थापना की। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने एक कमरे के क्लीनिक से ही की थी।
2 साल में बढ़ी सेल
मालूम हो, डाबर का नाम उन्होंने अपने नाम से ही लिया था। जिस इलाके में वे रहते थे लोग उन्हें डॉक्टर कहकर बुलाया करते थे। इसी से उन्हें आइडिया आया कि क्यों ना कोई ऐसा नाम रखा जाए जो लोगों को सुना-सुनाया भी लगे और जिसमें स्वदेश की भावना झलके। इसके लिए उन्होंने डॉक्टर का ‘डा’ और बर्मन का ‘बर’ लेकर डाबर नाम रख दिया।
2 सालों में उनके प्रोडक्ट्स की डिमांड इतनी बढ़ी कि डॉ. बर्मन ने 1986 में एक फैक्ट्री स्थापित करनी पड़ी। इस फैक्ट्री में तमाम तरह के आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स का निर्माण किया जाता था।
पिता के निधन पर बेटे ने संभाली कमान
धीरे-धीरे उनके इस बिजनेस ने रफ्तार पकड़ ली और उनकी कमाई दिन-दुगनी रात-चौगुनी बढ़ गई। हालांकि, साल 1907 में डॉ बर्मन का निधन हो गया जिसके बाद पिता के बिजनेस की कमान अब उनके बेटे सीएल बर्मन के हाथों में आ गई थी।
बर्मन ने एक होनहार बेटे का कर्तव्य निभाते हुए पिता के बिजनेस को बुलंदियों तक पहुंचाने का काम किया। उन्होंने रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर से लेकर प्रोडक्ट्स के विस्तार पर फोकस किया।
कुछ ही सालों में डाबर का बिजनेस इस कदर बढ़ा कि इसकी पहचान अब कलकत्ता के बाह दिल्ली तक फैल चुकी थी। साल 1972 में दिल्ली के साहिबाबाद में इस कंपनी के नाम से रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर की शुरुआत की गई। इससे कंपनी को अपने प्रोडक्ट्स की क्वालिटी में सुधार करने के नए अवसर मिले।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1994 तक आते-आते डाबर का बिजनेस इतना फैल चुका था कि इसका आईपीओ अन्य कंपनियों के मुकाबले 21 गुना ज्यादा सब्सक्राइब किया गया था।
तीन श्रेणियों में बंटे प्रोडक्ट्स
गौरतलब है, वर्ष 2000 तक डाबर के प्रोडक्ट्स इतने बढ़ गए कि इन्हें तीन श्रेणियों में बांटना पड़ा। अब इस कंपनी के तहत मिलने वाले प्रोडक्ट्स डाबर हेल्थकेयर, डाबर फैमिली प्रोडक्ट और डाबर आयुर्वेदिक प्रोडक्ट जैसी श्रेणियों में बंट चुके हैं।
रिपोर्ट्स के मुकाबिक, एक छोटे से क्लीनिक से जिस कंपनी की शुरुआत हुईथी उसका बिजनेस आज पूरी दुनिया में फैला हुआ है। डाबर की टोटल नेट वर्थ की बात करें तो ये 11.8 बिलियन डॉलर है।