Wednesday, November 27, 2024

ईवेस्ट से बनाया देसी RO, शुद्ध पानी के लिए निकाला घरेलू उपाय

बढ़ती आबादी आज भारत जैसे डेवलपिंग देश के लिए एक खतरनाक समस्या बनती जा रही है। इंसानों की बढ़ती संख्या प्राकृतिक संसाधनों पर हावी हो रही है। इनमें पानी के जल स्तर से लेकर हवा की शुद्धता तक सब शामिल है।

ऐसे में लोगों को जीने के लिए शुद्ध पेयजल तक के लिए तरसना पड़ रहा है। कई जगहों पर पानी का जल स्तर इतना कम हो चुका है कि वहां सूखे जैसी स्थिति उत्तपन्न हो रही है। कई शहरों में लोगों को पानी खरीद कर भी गुज़ारा करना पड़ता है।

पानी की शुद्धता को जड़ से खत्म करने के लिए आज बाजार में तमाम तरह के उपकरण आ गए हैं। जिनके इस्तेमाल से आप घर बैठकर पानी में मौजूद गंदगी को निकाल सकते हैं। इनको वॉटर प्योरिफॉयर के नाम से जाना जाता है। मार्केट में इनकी कीमत 25-35 हजार तक होती है।

बढ़ती महंगाई के कारण कई लोग इसे खरीदने में सक्षम नहीं हो पाते हैं जिसकी वजह से उन्हें गंदे पानी का ही सेवन करना पड़ता है। इस पानी को पीने से उनकी सेहत पर भी खासा असर पड़ता है।

आर्थिक तंगी से जूझ रहे ऐसे लोगों के लिए गुजरात के दो भाईयों ने एक बहुत ही सस्ता और टिकाऊ विकल्प ढूंढ निकाला है।

ईवेस्ट से तैयार किया प्योरिफॉयर

बता दें, गुजरात के सूरत निवासी अभिमन्यू राठी और वरदान राठी ने ‘सस्टेनेबल लाइवलीहुड इनिशिएटिव इंडिया’ नाम के स्टार्टअप की शुरुआत की है। इसके तहत दोनों ने ईवेस्ट से बना वॉटर प्योरीफॉयर तैयार किया है। उनका दावा है कि इससे दूषित पानी को मिनटों में पीने योग्य बनाया जा सकता है। इसके अलावा इसकी खासियत यह है कि इसमें बिजली का जरा भी उपयोग नहीं किया जाता है।

9 साल का लगा समय

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस प्योरिफॉयर को तैयार करने में दोनों भाईयों को नौ साल से अधिक समय लग गया जिसका नाम उन्होंने ‘वरदान’ रखा है। कंपनी के सह-संस्थापक अभिमन्यु राठी ने इस प्रोडक्ट के विषय में बताया कि उन्हें इसके बारे में ख्याल साल 2012 में आया था। इस दौरान वे केमेकिल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। तभी एक दिन उन्होंने महसूस किया कि आने वाले समय में शुद्ध पेयजल की समस्या लोगों के लिए एक गंभीर मुद्दा बनकर उभरेगी। इसके लिए उन्होंने समस्या के समाधान पर काम किया।

अभिमन्यू बताते हैं कि साल 2015 में उन्होंने एक स्टार्टअप की शुरुआत की जिसका नाम उन्होंने सस्टेनेबल लाइवलीहुड इनिशिएटिव इंडिया रखा। इसके तहत उन्होंने एक ऐसे वॉटर प्योरिफॉयर को बनाने की योजना बनाई जिसमें लागत भी ज्यादा ना हो और पानी की बर्बादी भी ना हो।

उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्होंने सबसे पहले जलवायु परिवर्तन को लेकर कोर्स किया। इससे उन्हें प्रकृति की गहराइयों को समझा। इसके बाद उन्होंने मार्केट में उपलब्ध इलेक्ट्रिक प्योरिफॉयर्स पर रिसर्च की।

सौर्य ऊर्जा का किया इस्तेमाल

इस दौरान दोनों भाईयों ने अपने आविष्कार की शुरुआत ग्राफेन के प्रयोग से की। दरअसल, ग्राफेन किसी भी वस्तु को सोखने का काम करता है और इसके जीवाणुरोधी गुणों के कारण फ़िल्टरिंग के रूप में यह अच्छी तरह से काम करता है। अभिमन्यू ने बताया कि यह काफी महंगा आता है। इसलिए उन्होंने कई सालों तक सस्ती और टिकाऊ वस्तु को बनाने या ढूंढने का काम किया, जिससे आसानी से पानी को फिल्टर किया जा सके।

इसके बाद उन्होंने पानी में मौजूद अन्य दूषित पदार्थों को निकालने के लिए सौर्य ऊर्जा का सहारा लिया। वे बताते हैं कि सोलर सेल को उन्होंने रीसायकल  ई-वेस्ट से बनाया। जिसका निर्माण उन्होंने पुराने फोन की स्क्रीन से किया। मोबाइल की स्क्रीन को उन्होंने सोलर सेल में बदलकर उसका इस्तेमाल किया।

प्रोडक्ट की कुल कीमत  5,000 रुपये

दोनों भाईयों की कड़ी मेहनत आखिरकार रंग लाई। उन्होंने एक ऐसे प्योरिफॉयर का निर्माण किया जिसको ईवेस्ट से तैयार किया गया है। इसकी खासियत के विषय में बताते हुए अभिमन्यू ने कहा कि इसकी कीमत 5,000 रुपये है और यह बिना किसी रखरखाव के खर्च के 1,00,000 लीटर पानी को शुद्ध कर सकता है, औसतन 40 लीटर पानी प्रत्येक दिन। यह दस साल तक चलेगा और 8 पैसे प्रति लीटर की दर से पानी को शुद्ध करेगा। सबसे अच्छी बात यह कि इस पूरी प्रक्रिया में पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों के लिए लाभकारी

वहीं, दोनों भाईयों ने इसे ग्रामीण क्षेत्र के लिए काफी लाभदायक बताया। उनका कहना है कि “इससे हम कई टन कार्बन उत्सर्जन को बचाकर पर्यावरण को लाभ पहुंचाएंगे। ग्रामीण भारत में लोग बैक्टीरिया और कीटाणुओं को मारने के लिए, उबलते पानी पर निर्भर रहते हैं। पानी गर्म करने के लिए किसी न किसी  रूप में कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि प्यूरीफायर के इस्तेमाल से सालाना 5-8 टन कार्बन उत्सर्जन की बचत होगी।”

आर्थिक समस्या बनी चुनौती

गौरतलब है, इस प्रोडक्ट को तैयार करने में हुई चुनौतियों के विषय में बात करते हुए अभिमन्यू और वरदान ने बताया कि इसपर रिसर्च के लिए उनके पास फंड की कमी थी। इसलिए उन्होंने अपनी बचत से 30,000 रुपये इन्वेस्ट किये। उन्होंने आगे बताया कि साल 2017 में राज्य सरकार को उनका यह आइडिया काफी पसंद आया जिसके बाद उन्हें अनुदान भी मिला। एसआईएलएल के संस्थापकों ने बताया कि वे साल 2020 से इस प्रोडक्ट को बेंच रहे हैं। अब तक वे 60 से अधिक वॉटर प्योरिफॉयर को बेंच चुके हैं।

 

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