भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ( First Astronaut Rakesh Sharma )का जन्म 13 जनवरी 1949 को एक गौण ब्राम्हण परिवार में पंजाब के पटियाला में हुआ था। राकेश शर्मा के जन्म के बाद उनके पिता देवेंद्र शर्मा और माता तृप्ति शर्मा हैदराबाद चले गए और वहीं बस गए। राकेश शर्मा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई वहीं के सेंट जॉर्ज ग्रामर स्कूल से की और कॉलेज की पढ़ाई के लिए उस्मानिया विश्विद्यालय को चुना। हैदराबाद में बचपन से लेकर खुद के कदम संभालते तक रहे। उन्हें हैदराबाद की संस्कृति से काफी लगाव था।
1971 के भारत-पाक युद्ध में अपनी योग्यता साबित की
वर्ष 1966 में राकेश शर्मा का चयन नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) में हुआ। वे देश सेवा में जाना चाहते थे। 1970 में राकेश ने मज़े से ट्रेनिंग पूरी की, फिर उनकी नियुक्ति भारतीय वायुसेना में बतौर पायलेट हुई। यह उनके लिए बिग ड्रीम पूरा होने जैसा था। वे कॉलेज के समय में हवा में उड़ने की चाहत रखते थे। राकेश ने जैसे ही वायुसेना जॉइन किया, उनको अपनी योग्यता दिखाने का मौका मिल गया। 1971 में हुए भारत-पाक युध्द में राकेश ने मिग विमान को सफलतापूर्वक उड़ाकर सबके अंदर विश्वास जागृत कर दिया कि वे कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। ऐसे ही कुक मौकों प राकेश ने अपनी क्षमता का प्रयोग किया और योग्यता के दम पर 1984 में वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर के ओहदे तक पहुँचे।
अंतरिक्ष की उड़ान से पहले हुई कड़ी ट्रेनिंग
राकेश को नही पता था कि कभी उन्हें भी अंतरिक्ष मे जाने का मौका मिल सकता है। बात हक़ी उन दिनों की जब भारत के अंतरिक्ष विज्ञान संगठन ‘इसरो’ और सोवियत संघ के ‘इंटरकॉसमॉस’ मिलकर अंतरिक्ष के लिए एक संयुक्त अभियान के लिए काम कर रहे थे। इस अभियान के तहत 3 लोगों को अंतरिक्ष मे भेजा जाना था जिसमें 2 लोग सोवियत संघ के और एक व्यक्ति भारत से होने वाले थे। 20 सितंबर 1982 को राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा को सोवियत संघ में होंने वाले ट्रेनिंग के लिए चुना गया। उन दोनों में से किसी एक को ही अंतरिक्ष मे जाने का मौका मिलता। कजाकिस्तान स्थित अंतरिक्ष स्टेशन बैंकानूर में ट्रेनिंग प्रोग्राम चला। उस प्रोग्राम के दौरान राकेश शर्मा की काबिलियत की नज़र में रखते हुए उन्हें अंतरिक्ष मे जाने का मौका दिया गया।
अंतरिक्ष मे पहुंचने वाले 138वे व्यक्ति बने
दो सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों कमांडर वाई वी मलिवेश और फ्लाइट इंजीनियर जी एम स्त्रोक्लोफ के साथ राकेश शर्मा ने 2 अप्रैल 1984 को उड़ान भरी। जिस यान से उड़ान भरी गई उसका नाम सोयुज़ टी-11 था। उड़ान भरने के बाद तीनों अंतरिक्ष यात्री सोवियत संघ द्वारा स्थापित ऑर्बिटल स्टेशन सॉल्यूज़-7 में पहुंच गए। इस तरह राकेश शर्मा अंतरिक्ष मे पहुंचने वाले 138वे व्यक्ति बने। भारत अपनी तरफ से अंतरिक्ष मे मानव भेजने वाला 14वां देश बना। राकेश शर्मा ने वहाँ योग अभ्यास भी किया। अंतरिक्ष मे उन्होंने 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए। इस दौरान उन्होंने कई रिसर्च वर्क भी किया।
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष मे थे तब सोवियत संघ के अधिकारियों के साथ मिलकर इंदिरा गांधी ने उनसे बात की और पूछा, “अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?” जवाब में राकेश ने कहा, “मैं बेझिझक कह सकता हूँ। सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।” यह सभी भारतीयों के लिए गर्व का समय था। अंतरिक्ष से लौटने के बाद उनका भारत मे जोरों से स्वागत किया गया। उनकी बहादुरी के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। सोवियत संघ ने भी उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ से सम्मानित किया।
ये सब चीजें लेकर गए थे अपने साथ
1987 में राकेश शर्मा विंग कमांडर के पद से रिटायर हुए। अंतरिक्ष में उन्होंने मैसूर में स्थित डिफेंस फ़ूड रिसर्च लैब की मदद से भोजन ले जाने का भी निर्णय लिया था। वे अपने साथ सूजी का हलवा, वेज पुलाव और आलू छोले लेकर गए थे। भोजन को उन्होंने अपने साथियों के साथ साझा भी किया था। वे अपने साथ इंदिरा गांधी, राष्ट्रपति जैल सिंह, महात्मा गांधी की समाधि, रक्षा मंत्री वेंकटरमन की तस्वीरें और राजघाट की मिट्टी लेकर गए थे। उन्होंने अंतरिक्ष से भारत की तस्वीरें भी कैद की। और इस तरह राकेश शर्मा का नाम इतिहास में अमर हो गया।
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