Wednesday, October 16, 2024

हाफ ह्यूमन रोबो : हादसे में कट गए दोनों पैर, हौसले थे बुलंद और बन गए पर्वतारोही

कहते हैं आपके हौसले बुलंद हो तो आपको ऊंचाइयों में जाने से कोई नही रोक सकता। आपके सामने ढेरों दीवारें आएंगी लेकिन आप उन सब को फाँदकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ते चले जायेंगे और सपनों को पूरा करेंगे। आज हम एक ऐसे ही युवा के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनके सामने कई मुसीबतें आईं लेकिन उन्होंने हार नही मानी और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे। ज़िंदगी ने उनके इम्तिहान हर मोड़ पर लिए लेकिन उन्होंने ज़िंदगी को ही जीना सीखा दिया।

कौन हैं ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ चित्रसेन साहू

हाफ ह्यूमन रोबो (Half Human Robo) के नाम से प्रसिद्ध चित्रसेन साहू (Mountaineer Chitrasen Sahu) का जन्म 12 अक्टूबर 1992 को छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में हुआ था। ग्राम बेलौदी में जन्मे चित्रसेन की एक दुर्घटना से दोनों पैर काटने पड़ गए। वे भारत से पहले डबल अम्प्यूटी हैं जिन्होंने पर्वतारोहण किया है। वे समावेश और विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता हैं। वह माउंट एल्ब्रस, माउंट किलिमंजारो (तंजानिया) और माउंट कोसियस्ज़को (ऑस्ट्रेलिया) पर चढ़ाई करने वाले भारत के पहले डबल दिव्यांग (Double Amputee) व्यक्ति हैं। वह एक राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी भी हैं।

वो हादसा जिसमें दोनों पैर शरीर से अलग हो गए

अपने गाँव से बारहवीं तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने बिलासपुर से इंजीनियरिंग की। बात है 2014 की जब वे छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में सिविल इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे। उसी दौरान उन्हें वायुसेना में भी चुन लिया गया था और वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहे थे। किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही राह चुन रखा था। 4 जून 2014 को वे अमरकंटक एक्सप्रेस से बिलासपुर जाने के लिए बैठे। भाठागांव रेलवे स्टेशन पर वे पानी की बोतल खरीदने के लिए उतरे। जब वे लौटे तो देखा कि ट्रेन धीमी रफ्तार से चलने लगी है। वे दौड़ कर ट्रैन के अंदर आना चाहते थे। दरवाजे के हैंडल को उन्होंने पकड़ा लेकिन हाथ फिसल गया और वे बहुत बड़ी घटना के शिकार हो गए।

अस्पताल में ही सोचा कि अभी भी ऊंचाईयों तक पहुंचा जा सकता है

रेलवे स्टेशन पर तैनात रेलवे पुलिस ने उन्हें देखा और तुरंत अस्पताल लेकर गए। उनके पैर बुरी तरह से जख्मी हो चुके थे। उसी दिन उनके एक पैर को शरीर से अलग करना पड़ा। अगले 24 दिनों के भीतर की मेडिकल नेगलिजेन्स के कारण उन्हें अपना दूसरा पैर भी गँवाना पड़ा। इलाज के दौरान जो भी उनसे मिलने आता सिर्फ दया और तरस भरी नजरों से देखता जो चित्रसेन को बिल्कुल भी अच्छा नही लगता। अस्पताल में उन्हें आर्थिक तकलीफों का सामना भी करना पड़ा लेकिन उनके दोस्त उनके साथ खड़े रहे। बिस्तर पर लेटे-लेटे उन्होंने गूगल इत्यादि में अपनी आगे की ज़िंदगी के बारे में सर्च करना शुरू क़िया। इसी दौरान उन्होंने पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की किताब पढ़ी तो उन्हें लगा कि जिंदगी में कभी भी कुछ खत्म नही किया जा सकता। उन्हें लगा कि वे अभी भी बहुत कुछ कर सकते हैं।

23 सितंबर को किया माउंटेन किलिमंजारो फतेह

चित्रसेन साहू का मानना है कि व्यक्ति अगर मन से हार जाता है तो वो जीवन में भी हार जाता है। व्यक्ति सिर्फ सकारात्मक सोच के सहारे ही कई कामयाबी हासिल कर सकता है। अपनी दुर्घटना के बाद, चित्रसेन साहू ने छत्तीसगढ़ के अनुभवी पर्वतारोही राहुल गुप्ता की सहायता से सेवन समिट (7 Summit) का प्रयास करने का फैसला किया। उन्होंने किलिमंजारो पर्वत के साथ शुरुआत किया। 23 सितंबर 2019 को -10 से -15 डिग्री सेल्सियस के तापमान में छह दिनों के बाद शिखर पर पहुंचे। बीच मे तो उन्हें ऐसा लगा कि वे मंज़िल तक नही पहुँच पाएंगे लेकिन वे डटे रहे। उन्होंने 2 मार्च 2020 को ऑस्ट्रेलिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट कोसियस्ज़को को फतह किया। उन्होंने 7 शिखरों में से एक माउंट एलब्रस को भी फतह किया है। वे आगे आने वाले दिनों में अन्य शिखरों डेनाली, एंकोकागुआ, विन्सन, मोंट ब्लांक, पुनकक जया को फतेह करने की तैयारी में लगे हुए हैं।

कृत्रिम पैरों के साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ के मैनपाट सहित कई छोटे पहाड़ो से शुरुआत की। फिर वे हिमांचल प्रदेश की 14 हज़ार ऊंची चोटी फतेह की। शुरुआती दौर में जब वे पर्वतारोही की ट्रेनिंग की इच्छा लेकर संस्थाओं के पास जाते थे तो उन्हें कोई सिखाना नही चाहता था। सब डर के कारण उनसे दूरी बनाकर रखना चाहते थे। चित्रसेन ने हार नही मानी और पर्वतारोहण का खूब अभ्यास किया। 23 सितंबर 2019 को किलिमंजारो पर तिरंगा फहराते हुए भारत ‘माता की जय’ कहा।

मिशन इनक्लूजन है उनका सपना

चित्रसेन साहू ने छत्तीसगढ़ में व्हीलचेयर बास्केटबॉल की टीम बनाई और राष्ट्रीय स्तर तक भी पहुँचे। उन्होंने दिव्यांग महिलाओं को भी व्हीलचेयर बास्केटबॉल में शामिल किया और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया। चित्रसेन मिशन इनक्लूजन (Mission Inclusions) पर काम कर रहे हैं। मिशन इनक्लूजन अर्थात उन्हें भी समाहित किया जाए, किसी परग्रही की तरह व्यवहार न किया जाए। वे कहते हैं कि लोग किसी भी दिव्यांगजन के ऊपर ना ही तरस खाए और ना ही दया भाव करे। वे उनसे ऐसे ही मुलाक़ात करें जैसे वे आम लोगों के साथ मिलते हैं। वे दिव्यांग लोगों को आत्मनिर्भर बनाते हुए उनके सपनों को पूरा करने में उनकी सहायता करना चाहते हैं। वे मैराथन में भी भाग लेते हैं जिम में समय भी बिताते हैं।

जब दिव्यांग होने के कारण लायसेंस और गाड़ी के रजिस्ट्रेशन के लिए लड़ना पड़ा

चित्रसेन साहू ने अपने ड्राइविंग हक के लिए भी खूब लड़ाई लड़ी। वर्ष 2017 में 4 अक्टूबर को उन्होंने मारुति डिजायर कार खरीदी और अपनी सुविधा अनुसार उसको मॉडिफाई करवाया। उन्होंने ऑथोराइज गौराज से पैर की जगह होने वाले कार के ब्रेक और अक्सेरलेटर को हाथ के पास करवा डियाम जब आरटीओ (RTO) पहुँचे तो उन्होंने उनकी गाड़ी को रजिस्टर करने से इनकार कर दिया। वे सरकार के पास भी गए लेकिन उनकी सुनवाई नही हुई। आखिर में उन्होंने बिलासपुर हाई कोर्ट में अपने अधिकार की लड़ाई शुरू की। वे विजय हुए और न्यायालय ने कहा कि वे चित्रसेन की ड्राइविंग टेस्ट लें और उन्हें लायसेंस प्रदान करें। उनके इस निर्णय के साथ अन्य दिव्यांगों को भी ड्राइविंग करने की अनुमति दी गई।

चित्रसेन की कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है। वे निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। अगर आपको कोई आपके लक्ष्य से और हक़ से रोकता है तो उसके लिए लड़िये। खुद के अलावा दूसरों को भी प्रेरित करिए। वे कहते हैं व्यक्ति को मन से हार नही मानना चाहिए। जब तक वह हार नही माना है तब तक वह सफल ही है। उम्मीद है वे ऐसे ही कदम बढ़ाते रहेंगे और देश का नाम रोशन करते रहेंगे।

Latest news
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here