नई दिल्लीः भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हैं जिन्होंने देश के राजनीतिक समीकरणों पर बड़ा प्रभाव छोड़ा। 30 जून 1980 को विमान हादसे में हुई संजय गांधी की मौत भी एक ऐसी ही घटना है। इस घटना के बाद देश के राजनीतिक समीकरण बदल गए ।
संजय गांधी ( Sanjay Gandhi ) इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे थे उस समय तक इंदिरा के बडे बेटे राजीव गांधी की राजनीति में कोई रुचि नहीं थी और वह एक पायलट के तौर पर कार्य कर रहे थे। इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी संजय ही थे। संजय तेजतर्रार शैली और दृढ सोच रखने के कारण युवाओ में बेहद लोकप्रिय हो चले थे। हालांकि इमरजेंसी के दौरान उनकी भूमिका को लेकर सवाल भी खड़े हुए थे। इमरजेंसी के दौरान संजय एक दबंग राजनेता के रूप में उभरे थे ।
संजय गाँधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु
30 जून 1980 को संजय गांधी दिल्ली में एक नया विमान उड़ा रहे थे यह विमान फ्लाइंग क्लब का था इस हादसे के दौरान उनके एक साथी सुभाष सक्सेना भी विमान में सवार थे । बताया जाता है कि संजय एरोबैटिक स्टंट कर रहे थे इसी स्टंट के दौरान विमान ने संतुलन खो दिया और विमान गिर गया। इस दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गयी । उनके साथी सुभाष सक्सेना भी इसी दुर्घटना में मारे गए।
संजय गाँधी एक महीने पहले ही बने थे कांग्रेस महासचिव
इस दुर्घटना से 1 महीने पहले ही मई 1980 में उन्हें कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया था। संजय को इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता था और इंदिरा के महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भूमिका किसी से छिपी नही थी।
1974 में हुई थी मेनका गांधी से शादी ।
संजय गांधी ने वर्तमान भाजपा नेता मेनका गांधी से 23 सितंबर 1974 को शादी की थी। संजय और मेनका गांधी के एक पुत्र वरुण गांधी है । दुर्घटना के वक्त वरुण मात्र 3 महीने के थे। इस घटना के बाद मेनका गांधी के संबंध गांधी परिवार से ज्यादा दिन अच्छे नही रहे।
इमरजेंसी में संजय गांधी की भूमिका
महज 33 साल की उम्र में ही संजय सत्ता और सियासत की धुरी बन गए थे । इंदिरा गांधी के महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भूमिका साफ दिखाई देती थी। इमरजेंसी के दौरान उन पर ज्यादती के आरोप भी लगे। यहां तक की ये भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने के निर्णय के पीछे भी संजय थे। कहा जा सकता है कि इंदिरा के हर निर्णय में संजय उस वक्त शामिल थे।
इमरजेंसी में नसबंदी अभियान
1975 में लगे आपातकाल ( इमरजेंसी) के दौरान संजय गांधी ने नसबंदी अभियान चला दिया। इस नसबंदी अभियान के दौरान करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई । ऐसा बताया जाता है कि नसबंदी अभियान को सफल बनाने के लिए संजय ने तंत्र की पूरी ताकत झोंक दी। इस अभियान पर क्रूरता के आरोप भी लगे और कहा गया कि जबरन लाखो लोगो की नसबंदी की गयी। जिससे गलत तरह से ऑपरेशन करने से हजारो लोगो की मौत भी हुई।
35 साल रखना चाहते थे इमरजेंसी
25 जून 1975 को जब देश मे इमरजेंसी लगायी गई तो देश मे चारो तरफ हड़कंप मच गया। इस घटना को आज भी लोकतंत्र के ऊपर काला धब्बा माना जाता है । विपक्ष के हजारों नेताओ को जबरन जेल में डाला गया। हालात दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहे थे। संजय की युवा ब्रिगेड इस समय बेलगाम हो गयी थी । वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि इमरजेंसी के बाद जब उनकी मुलाकात संजय से हुई तो उन्होंने कहा था कि वे देश मे 35 साल तक इमरजेंसी लगाना चाहते थे। लेकिन इस निर्णय के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी तैयार नही थी। 2 साल बाद ही इंदिरा गांधी ने चुनाव करवा दिए थे
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