नौ महीने तक अपने गर्भ में बच्चों को पालने वाली माँ कुछ भी कर सकती है। इस बात को और भी प्रखर रूप से सच बनाती हैं जयपुर की रहने वाली मंजू यादव। एक ऐसी महिला जो अपने परिवार के लिए मर्दों वाली काम करती है। उन्हें देखकर कोई भी कह सकता है कि महिला और पुरुष में फर्क नही करना चाहिए। मंजू यादव जयपुर जंक्शन में कुली का काम करती हैं। वे बाकी कुलियों की तरह ही सिर-कंधें पर बोझ उठाती हैं। उनकी कहानी से कई महिलाओं को प्रेरणा मिलती है कि इस दुनिया मे स्त्री कुछ भी करने का जज़्बा रखती हैं।
अपने पीछे 3 बच्चे छोड़कर पति चल बसे
अपने परिवार में मंजू यादव पहली कुली नही है बल्कि उनके ससुर और पति भी कुली का ही काम करते थे। उनके ससुर ने सारी जिंदगी यात्रियों की सेवा ही कि। ससुर का बिल्ला नंबर 15 उनके पति को मिला। पति भी कुली के काम मे ही सुकून तलाशते थे। एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने मंजू यादव की ज़िंदगी बदल के रख दी। जीवन मे सब कुछ अच्छा चल रहा था तभी मंजू के पति को भगवान ने अपने पास बुला लिया। बेहद कम उम्र में उनके पति अपने पीछे 3 बच्चे छोड़कर ईश्वर की शरण में चले गए। किसी भी अन्य पत्नी की तरह यह खबर सुनकर मंजू के पैरों तले धरती खिसक गई। उन्हें समझ नही आया कि अब उनका और उनके बच्चों का देखभाल कौन करेगा।
पति के ही काम को जारी रखने की सोची
15 बरस पहले जब मंजू के पति की मृत्यु हुई तब उन्होंने पति के काम को ही जारी रखते हुए बिल्ला नंबर 15 को अपनाया और कुली का काम शुरू क़िया। मंजू बताती हैं कि गाँव की महिलाएँ मटके से पानी लाती है, बिल्कुल वैसे ही मेहनत का काम तो कुली का भी है। महिलाएं गाँव मे अपने गायों-भैंसों के लिए घास काँटती है साथ ही उन्हें चराती भी हैं। सेम वही मेहनत कुली के काम में भी तो है। वे रेलवे स्टेशन पहुँची। उन्होंने वहां कुलियों को लगेज ढोते हुए देखा। कोई कंधे पर बैग लटकाने के साथ ही सिर पर भी लगेज रखे हुए हैं। कोई ट्राली खींचकर सामान ले जा रहा है। उन्हें लगा कि कुली का काम ज्यादा मुश्किल भी नही हैं। उन्होंने तय किया कि ये काम तो वे भी कर सकती हैं।
जब अपने वजन से ज्यादा वजन के समान ढोने पड़े
पहले दिन जब मंजू बिल्ला नंबर 15 पहनकर स्टेशन पहुंची तो कुली भाइयों ने उनका साथ दिया। हर कदम में कुली भाइयों के साथ से वे लगभग पिछले दस सालों से कुली का काम कर रहीं हैं। शुरू-शुरू में तो उन्हें कोई पहचानता भी नही था। यात्री भी मंजू को कुली नही समझते थे। उस समय उनका वजन 25 किलो के आस पास था और उन्होंने 30 किलो वजन उठाने का प्रयास किया और असफल हुई। पैसेंजर यह देखकर पूछने लगा कि मंजू को किसने भर्ती कर दिया। मंजू ने कहा कि वे मजबूरी में ये सब काम कर रहीं हैं। मंजू बताती हैं कि उनकी दी बेटी और एक बेटे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बहुत कुछ सहना पड़ा था।
अनपढ़ होने के बावजूद सभी ट्रेनों की टाइम टेबल है याद
मंजू यादव का दिनचर्या काफी कठिन है। वे सुबह 5 बजे उठती हैं फिर साढ़े पांच बजे तक स्टेशन पहुंच जाती हैं। 9 बजे तक वह अपना काम करती हैं फिर वापिस रूम में लौट जाती हैं। वापिस रूम जाने के बाद वह अपने दायित्वों का निर्वहन करती हैं और नहाने के बाद भोजन बनाती है और खाकर लगभग 11 बजे वापिस स्टेशन आ जाती हैं। 11 से 2 बजे तक स्टेशन में काम करने के बाद रेस्ट करने रूम चली जाती हैं और वहाँ से शाम साढ़े पांच बजे तक स्टेशन आती हैं और रात के 9 बजे तक काम करती हैं। इतने सालों के अनुभव से मंजू को अच्छे से याद हो चुका है कि कौन सी सुपरफास्ट ट्रैन कब आती हैं और कौन से स्टेशन में रुकती हैं। मंजू अनपढ़ हैं लेकिन दिमाग के सहारे उन्हें सभी ट्रेनों की टाइम टेबल याद है।
रोज़ करती हैं कमर तोड़ मेहनत
हम अगर एक बार भी बड़ा सा बैग लेकर स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफार्म जाए तो जान निकल जाती हैं। लेकिन मंजू यादव इस मेहनत के काम को लगन से करती हैं। ट्राली में सामान डालना फिर उन्हें निकालना, सर पर समान ढोकर सीढ़ियों पर चढ़ना। बेहद परिश्रम का काम है। जब मंजू थक कर चूर हो जाती हैं तब वे अपने बच्चों की तस्वीरें देखती हैं। उन्हें इससे सुकून मिलती है और फिर से काम मे लगने की प्रेरणा मिलती हैं। मंजू के बच्चे कहते हैं कि उन्होंने कभी भी पिता की कमी खलने नही दी।राष्ट्रपति सम्मान से हैं पुरुस्कृत
राष्ट्रपति सम्मान से हैं पुरुस्कृत
मंजू को अपने काम के लिए इतनी ट्राफियां मिली हैं कि उन्हें रखने के लिए घर मे जगह नही है। मंजू कहती हैं कि महिलाएं हिम्मत दिखाए और महिलाओं का नाम आगे बढ़ाए। मंजू यादव राष्ट्रपति पुरुस्कार से भी सम्मानित हैं और कुलियों की प्रेसिडेंट भी रह चुकी हैं। उनके साथ काम करने वाले कुली भाई उनकी तारीफ करते हैं और भरपूर समर्थन करते हैं। उनके व्यवहार के बारे में अब अच्छा ही बताते हैं। मंजू यादव जैसी महिलाएं ही हर बाधाओं को पार करके साबित करती है कि महिलाएं किसी भी फील्ड में पुरुषों से कम नही हैं।