धार्मिकता, पूजा, अर्चना और आस्था के नाम पर लोग घरों में मूर्तियां ले तो आते है, किन्तु खंडित होने पर दूषित होने पर घरों से निकाल देते है. अक्सर सड़क के किनारे, पेड़ों के नीचे, नदिओं के किनारो पर भगवान की मूर्ति हम देखते रहते है. हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान् की खंडित मूर्ति घर में रखना शुभ नहीं होता. दुर्दशा इतनी है की यह मूर्तियां कई बार कूड़े कचरे के ढेर में भी देखने मिलती है. ऐसा करने से न सिर्फ प्रकृति प्रदूषित हो रही है बल्कि धर्म के लिए भी यूँ मूर्तियों का अपमान सही नहीं.
वो भी समय था जब भगवान की मूर्ति बनाने के लिए सिर्फ मिटटी का इस्तेमाल हुआ करता था, कित्नु आज के समय में ईश्वर की मूर्ति बनाने के लिए तरह तरह के पदार्थ इस्तेमाल किये जाते है, जैसे की प्लास्टर ऑफ़ पेरिस, थर्माकोल, केमिकल और सिंथेटिक रंग. मिटटी से मूर्तियों को यदि नदी में विसर्जन किया जाता था तब कुछ समय बाद वह पानी में मिल जाती थी, कित्नु आज इन पदार्थो से बनीं मूर्तियां समय के साथ नष्ट नहीं होती, सड़क के किनारे न भी रख कर यदि नदी में विसर्जन किया जाए तब भी वह पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित होती है, और कई बार लहरों के साथ मूर्तियां, नदी किनारे आ जाती है. लोग पर्यावरण को बचने की बातें तो बहुत करते है किन्तु उस राह पर कदम कुछ ही लोग उठा पाते है, इन लोगो में एक कदम नासिक की रहने वाली तृप्ति गायकवाड़ का भी है, जो अपनी सम्पूर्ण सेवा फाउंडेशन संसथान के साथ लगातार इसके सुधार में कार्य कर रहीं है.
वैसे तो तृप्ति पेशे से वकील हैं, कित्नु इसी के साथ साथ तृप्ति एक NGO भी चलातीं है. उनके संसथान में किसी भी धर्म की खंडित मूर्तियों को, ख़राब फोटो फ्रेम्स को, खिलौनों में तब्दील करके बस्ती में रहने वाले बच्चों, भीख मांगने वाले बच्चों में बाँट दिया जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं मूर्तिओं को तब्दील करके पशु पक्षियों के लिए खाने का बर्तन भी बनाया जाता है
कहाँ से हुई शुरुआत?
तृप्ति गोदावरी नदी के पास ही रहती हैं, एक दिन अपने घर से उन्होंने नदी में फोटोफ्रेम डालते एक शख्स को देखा, अचानक प्रक्रिया कर आदमी को रोका और उस से फ्रेम लेते हुए कहा, मैं इस फ्रेम को पुनः इस्तेमाल करने योग्य बनाउंगी.
सोशल मीडिया रहा बेहद कारगार
तृप्ति ने अपने पिता से कुछ पैसो की मदद लेकर नेक काम की शुरुआत की. तृप्ति ने इस काम में सोशल मीडिया की भी मदद ली. सोशल मीडिया के ज़रिये तृप्ति ने लोगो को अपनी संस्थान के बारे में बताया और साथ ही खंडित मूर्तियां और फोटो फ्रेम्स देने को कहा. सोशल मीडिया की मदद से पहले ही हफ्ते में तृप्ति की मेहनत रंग लायी थी. मुंबई में लोग आज खुद तृप्ति को मुर्तिया दने आते है और उनके इस काम की सराहना भी करते है. चूँकि ईश्वर से जुड़ी कोई भी चीज़ संवेदनशील होती है, तृप्ति इस बात का बेहद ध्यान रखती है, की उनके किसी काम से किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचे.