आज के दौर में आप किसी भी संगीतात्मक कार्यक्रम में जाएँगे तो आपको ढेरों तरह की इलेक्ट्रिकल म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट देखने को मिल जायेंगे। इनमें से अधिकतर यंत्र पश्चिमी देशों से हमारे पास आए हैं। हम भारतीय खान-पान के साथ-साथ दूसरे देशों से बहुत सी कलाएं सीखते जा रहे हैं। हमें यह आभास भी नही रहा कि हमारे देश की संस्कृति की पहचान होने वाले कई वाद्ययंत्र ( musical instruments ) अब लगभग समाप्ति की ओर हैं। आज के पब्जी और फ्रीफायर खेलने वाले युवा, कई लोककला और लोक संस्कृति से संबंधित चीजों को नही जानते हैं। वाद्ययंत्रों के नाम नही जानते , वाद्ययंत्रों के प्रकार नही जानते । आइए अब उन वाद्ययंत्रों की बात करते हैं जो लगभग अब ना ही के बराबर ही कहीं देखने को मिलते हैं।
- पेना ( Pena )
इस शब्द से ही हमारे देश के कई लोग वाकिफ नही होंगे। यह वाद्ययंत्र मणिपुर राज्य सहित आस-पास के इलाकों में स्थानीय लोकसंगीत में उपयोग किए जाते हैं। यह एक प्राचीन संगीत वाद्ययंत्र है। पेना एक पतली बांस की छड़ से बना होता है। वह छड़ ड्रम के आकार के एक सूखे नारियल के खोल से जुड़ी हुई होती है। इस में एक पतली रस्सी होती है। उस रस्सी को ट्रेडिशनल रूप से घोड़े के मुलायम बालों से बनाई जाती है। इस मोनोस्ट्रिंग पेना की गूंजने वाली मधुर ध्वनि मणिपुर प्रदेश में आयोजित होने वाली सभी प्रसिद्ध पर्वो में बजाया जाता है। लाई हरोबा, मणिपुर के प्रमुख पर्व है जहाँ पेना बजाया जाता है। आज के इस डिजिटल युग में गिनती के ही कलाकार बचे होंगे जो पेना को बजाने की कला से वाकिफ होंगे। असम के कुछ अन्य इलाकों में पेना को बेना नाम से भी संबोधित किया जाता है और बजाया जाता है।
- मयूरी ( Mayuri )
जैसा कि नाम से इसके सुंदरता का आभास होता है। मयूरी एक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट है जो मोर पक्षी के आकार में दिखता है। मयूरी की बनावट और ध्वनि किसी के भी मन को खुशी से भर देती है। कहा जाता है कि सिक्ख धर्म के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने ही इस संगीत यंत्र को बनाया था। उनका इस मयूरी के साथ एक खास रिश्ता है। इनमें मोर के पंखों का भी उपयोग किया जाता है। माँ सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और मयूरी को उनसे भी सम्बंधित बतलाया जाता है। सिक्खों के भक्ति से संगीत या भजन संध्यायों में मयूरी को बजाया जाता है। यह लगभग विलुप्ति की कगार पर है।
- नागफणी ( Naagfani )
मयूरी की तरह नागफणी के नाम से भी बहुत बातें साफ हो जाती हैं। कई लोग पहली दफा नागफणी का नाम सुने होंगे या चित्र के माध्यम से अभी देख रहे होंगे। इस यंत्र के जिस जगह से ध्वनि बाहर निकलती है वह नाग सांप के मुख की तरह दिखती है। जिस कारण इसे नागफणी कहा जाता है। उत्तराखंड, राजस्थान और गुजरात तथा आस पास के अन्य इलाकों में नागफणी को उपयोग में लाया जाता था। विवाह कार्यक्रमों में नागफणी को बजाकर रस्म अदायगी की जाती थी। इस उपयोग सेनाओं के भीतर जोश जागृत करने के लिए भी किया जाता था। राजस्थान में अतिथि सत्कार के वक़्त भी नागफणी को बजाकर माहौल बनाया जाता था। तांत्रिक साधना करने वाले कई लोग इसका उपयोग करते थे। इस फाइवजी के जमाने में नागफणी कहीं पर सुनने को नही मिलता है। राजस्थान के कुछ दूर-दराज इलाकों में नागफणी के उस्ताद कलाकार ज़रूर मौजूद हैं।
- रुद्र वीणा ( Rudra veena )
इस वीणा को आपने फिल्मों और टीवी पौराणिक धारावाहिकों में अवश्य सुना होगा। रुद्र शब्द भगवान शिव को प्रस्तुत करता है। और रुद्रा वीणा भगवान शिव की सबसे प्रिय वीणा है। रुद्रा वीणा लकड़ी या बांस से बना होता है, जो अंदर से बिलकुल खोखला होता है और उसमें तार भी जुड़े हुए होते हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में चार चांद लगाने का काम यही करता है। रुद्र वीणा को बाकी के सभी स्ट्रिंग वाले संगीत यंत्रों की जननी कहा जाता है। इसे सीखने के लिए बहुत ध्यान और अभ्यास की आवश्यकता होती है। देश में अब इसके जानकार बेहद कम राह गए हैं।
- मोर्चांग ( Morchang )
राजस्थान के लोक संगीत के कलाकार इसका उपयोग करते हैं। यह सुर नही ताल की ध्वनि निकालता है। यह मोर के एक पंख के आकार जैसा दिखता है और वह मोर का पंख श्री कृष्ण के सबंधित बताया जाता है। मोर्चांग को माउथ ऑर्गन की जननी के रूप में भी जाना जाता है। इसे होंठों में दबाकर एक हाथ के उपयोग से बजाया जाता है। इसके लिए सांसों को कंट्रोल में रखना पड़ता है। इसे वीणा का छोटा वेरिएशन कहा जाता है। बॉलीवुड के दिग्गज संगीत निर्देशक आर डी बर्मन ने एक गाने में इसका बारीकी से उपयोग किया था। यह यंत्र अब बहुत कम दिखाई में पड़ता है लेकिन संस्कृति से जुड़ा हुआ है।