कहते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, लेकिन वो दौर दूसरा था और ये दौर दूसरा है। आज के ज़माने में लोगों को काम करने से ज्यादा उसके तौर-तरीकों में नुक्स निकालना पसंद है, यही वजह है कि भारत में बेरोजगारी की दर दिन प्रतिदिन लगातार बढ़ती जा रही है।
भतीजी को होती थी तकलीफ
यही परिस्तिथियां लोगों के समक्ष डेयरी या फार्मिंग के वक्त भी खड़ी हो जाती हैं। उन्हें गाय, भैंस का गो-बर उठाने में दिक्क्त होती है। ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र के बीड जिले से सामने आया। यहां के निवासी मोहन लांब ने साल 2014 में अपनी भतीजी की शादी बड़े धूम-धाम से की थी। उसके ससुरालीजन घर में ही गौशाला चलाते थे। वहां पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी काम करना पड़ता था। लेकिन मोहन की भतीजी को यह काम कतई पसंद नहीं था। उसे पशुओ का गोबर उठाने में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी।
यही वजह थी कि उसके घर में आए दिन इस बात को लेकर झगड़ा होता था। एक दिन बात यहां तक बढ़ गई कि परिजनों ने उसे घर से निकाल दिया और मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया। इस दौरान मोहन लांब को एहसास हुआ कि पशुपालको के लिए यह कितनी बड़ी समस्या है। उन्हें यह महसूस किया कि इसकी वजह से लोगों के घर तक टूट जाते हैं।
कोई इस कार्य को नहीं करना चाहता
इसके लिए उन्होंने इस समस्या की तह तक जाने का फैसला किया। उन्होंने अपने क्षेत्र की तमाम गौशालाओं का भ्रमण किया, इनके संचालकों से मुलाकात की। इनको चलाने में आने वाली चुनौतियों के विषय में गहराई से तफ्तीश की। इसपर उन्हें पता चला कि इस काम के लिए लेबर भी आसानी से नहीं मिलते हैं। लोगों को यह काम करने में दिक्कत आती है, जल्दी कोई इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं होता है।
लोगों से बात करके, उनकी समस्याओं को सुनके मोहन दिन रात इसी जद्दोजहद में डूबे रहते कि आखिर कैसे इनकी इस समस्या का उपाय निकाला जा सकता है। वे इसी खोज में घंटों समय लगाते कि इसे हाथ से उठाने का दूसरा विकल्प क्या हो सकता है।
गोबर उठाने की मशीन बनाने का किया निर्णय
फिर एक दिन उनके दिमाग में एक ख्याल आया कि क्यों ना वे गोबर उठाने की मशीन का निर्माण करें। इस विचार को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने दिन रात मेहनत की। अपना घंटों समय बर्बाद करने के बाद आखिरकार उन्होंने इसे उठाने की मशीन का निर्माण कर ही लिया।
मशीन की खासियत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह मशीन एसी और डीसी, दोनों मोटर्स के साथ काम कर सकती है। बैटरी लगाने के बाद मशीन का वजन 60 किलो हो जाता है जबकि बैटरी के बिना यह 50 किलो ही रहती है। बताया जा रहा है कि यह मशीन एक मिनट में 40 किलो गोबर को इकट्ठा कर सकती है। मशीन में प्लास्टिक क्रैट रखने की जगह है, जिसमें गोबर इकट्ठा होता रहता है। एक वेबपोर्टल से बात करते हुए मोहन ने बताया कि इस मशीन से इकट्ठा करने के बाद, क्रैट को उठाने के लिए भी उन्होंने एक ट्रॉली बनाई है। इस तरह से अब लोगों को इसे छूने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और वे इसे इकट्ठा करके एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकते हैं।
शुरु किया स्टार्टअप
जानकारी के अनुसार, अब तक 25 से अधिक मशीनों को मोहन ने अपने नए स्टार्टअप ‘कल्पिक एग्रोटेक’ के तहत बेंचा है। उनका मानना है कि छोटी गौशालाओं और घरों आदि में काम करने वाले लोगों के लिए यह मशीन काफी उपयोगी साबित हो रही है।
पहले भी कर चुके हैं कई आविष्कार
बता दें, 48 वर्षीय मोहन ने इससे पहले भी एक स्प्रेय़र का निर्माण किया था। इसकी मदद से लोगों को अपनी फसलों पर छिड़काव करने में काफी आसानी होती थी। उनके इस आविष्कार के लिए उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा पुरुस्क्रित भी किया गया था।
NIF से मिली ग्रांट
खबरों के मुताबिक, गोबर उठाने की मशीन को बनाने से पहले मोहन ने नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को इस मशीन का प्रोटोटाइप और आइडिया भेजा था। संस्थान को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि उन्होंने इस मशीन पर काम करने के लिए उन्हें ग्रांट दी। कड़ी मेहनत और काफी रिसर्च के बाद मोहन अपने इस आविष्कार को पूरा करने में सफल हुए।
10वीं तक की पढ़ाई
गौरतलब है, मोहन ने सिर्फ 10वीं तक ही पढ़ाई की है। लेकिन उन्हें चीजों को जानने की इतनी ललक थी कि वे बचपन से ही हर इलेक्ट्रॉनिक चीज़ में कारीगरी दिखाया करते थे। कई बार उन्हें घरवालों से डांट भी पड़ती थी लेकिन वे नहीं मानते थे। उनका यही जिज्ञासू स्वभाव आज उनकी सफलता का कारण बना है। आज वे अपने आविष्कारों से लोगों की समस्याओं का हल ढूंढ रहे हैं।