अगर आप बॉलीवुड के प्रशंसक है और पुरानी फ़िल्मों और गीतों के साथ बड़े हुए हैं तब आपको वो गीत याद ही होगा, जिसमें राज कपूर नदी किनारे पेड़ की एक डाल पर बैठ के गाना गा रहे हैं, “अरे बोल राधा बोल, संगम होगा कि नही।” उसी गीत में फ़िल्म की नायिका वैजयंती माला लाल मोनोकिनी में मज़े से नदी में तैर रही है और रह-रह कर नायक को देख रही है। उस सीन में वैजयंतीमाला की खूबसूरती ने दर्शकों का मन मोह लिया था। संगम में दिए गए शंकर-जयकिशन के गाने आज भी सुपरहिट हैं।
राज कपूर की मैग्नम ओपस ‘संगम’
राज कपूर एक अभिनेता होने के साथ ही निर्माता और निर्देशक भी थे लेकिन जिस फ़िल्म की बात हम करने जा रहे हैं, उस फिल्म के बाद से वे एडिटर भी बन गए थे। यहां बात हो रही है राज कपूर की प्रसिद्ध रचना ‘संगम’ की। संगम राज कपूर की बहुत बड़ी प्रोजेक्ट थी, जिसकी कहानी उनकी पहली फ़िल्म ‘आग’ (1948) के निर्माण काल मे इंदर राज आनंद ने लिखी थी।
संगम के बनने की कहानी बड़ी रोचक है
संगम में राज कपूर अपने साथ नरगिस और दिलीप कुमार को कास्ट करके ‘घरौंदा’ नाम से बनाना चाहते थे। बात नही बनी और 1960 आ गया। तब राज कपूर को देवानंद और उत्तम कुमार ने भी मना कर दिया। उस वक़्त तक उनके संबंध नरगिस के साथ भी बिगड़ चुके थे। कपूर ने राजेन्द्र कुमार को गोपाल के किरदार के लिए फाइनल किया तो नरगिस ने यह भी कहा कि वे ‘मदर इंडिया’ में राजेंद्र कुमार की माँ बन चुकी हैं इसलिए अब प्रेमिका नही बनना चाहती।
संगम से जुड़ी रोचक बातें
राज कपूर ने उस दौर में एक लंबी फ़िल्म बनाने का निर्णय लिया था। यह फ़िल्म करीबन चार घंटे की थी। यह इतिहास की पहली फ़िल्म थी जिसमें दो इंटरवेल रखे गए थे। इस फ़िल्म को देखने जाने का अर्थ यह था मानो आप किसी मेले में जा रहे हों और आपका आधा दिन उसी में बीत जाएगा।
फ़िल्म को दर्शकों ने बेपनाह मोहब्बत दिखाई और इसने जमकर कारोबार किया। यह पहली हिंदी फिल्म थी जिसकी शूटिंग यूरोप में की गई थी। इस फिल्म को सोवियत संघ में भी रिलीज किया गया था और 1968 में यह टर्की, बुल्गारिया, ग्रीस और हंगरी में भी प्रदर्शित हुई।
यह राज कपूर की पहली रंगीन फ़िल्म थी। अपने सपनों के इस प्रोजेक्ट के लिए राज कपूर ने संपादन का कार्य अपने जिम्मे लिया और बड़े प्यार से इसकी एडिटिंग की। यह वैजयंतीमाला और राज कपूर की आखिरी फ़िल्म रही।
वैजयंती माला ने एंट्री सीन में पहनी थी मोनोकिनी
राज कपूर की फ़िल्म आवारा(1951) में ही नरगिस ने पहली बार स्विमसूट पहना था। वे उन शुरुआती अभिनेत्रियो में से एक थी जिन्होंने पर्दे के लिए बि’किनी और स्विमसूट पहनना शुरू किया। उनके बाद नूतन ने 1958 में दिल्ली का ठग के लिए स्विमसूट पहना। लेकिन संगम में वैजयंती माला ने जो अदा दिखाई, उनके सामने बाकी सभी अभिनेत्रियाँ फीकी रह गई। उस वक़्त उनके एंट्री सीन में ही लोग उनकी सुंदरता देखकर सिटी बजाने लगते थे। बाद में शर्मिला टैगोर, मुमताज़, परवीन बॉबी, ज़ीनत अमान और डिंपल कपाड़िया जैसी अभिनेत्रियों ने बिकि’नी पहनकर अपनी हॉटनेस दिखाई और दर्शकों का दिल जीता।
संगम की तरह बनाई थी मेरा नाम जोकर और असफल रहे
राज कपूर ने अपने इस दो इंटरवेल वाले फॉर्मूले को अपनी अगली बड़ी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में भी अपनाया। मेरा नाम जोकर में उन्होंने कई बड़े सितारों के साथ विदेशी कलाकार को भी लिया था। यह फ़िल्म 4 घंटे पन्द्रह मिनट की थी। इस फ़िल्म की असफलता ने राज कपूर को तोड़ दिया था। लंबी फ़िल्म होने के कारण यह फ़िल्म लागत भी नही निकाल सकी।
राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ का एक गाना याद आता है, “जीना यहाँ, मरना यहाँ। इसके सिवा जाना कहाँ ।”