ईश्वर ने दुनिया के हर शख्स को किसी ना किसी हुनर से नवाज़ा है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि कोई इसे समय रहते पहचान लेता है तो कोई उससे हमेशा ही अंजान बना रहता है। हालांकि, इस हकीकत को किसी भी सूरत में नहीं झुठलाया जा सकता कि हर व्यक्ति किसी ना किसी काम में माहिर होता है। आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने टैलेंट के दमपर ख्याति प्राप्त की।
रणछोड़दास से पागी तक का ‘सफर’
हम बात कर रहे हैं रणछोड़दास रबारी ‘पागी’ की। गुजरात के बनासकांठा में जन्म लेने वाले रणछोड़दास पागी को ईश्वर ने बेहद ही रोचक हुनर से नवाज़ा था। आपको जानकर हैरानी होगी कि पागी इंसानों के पैरों के निशान देखकर अंदाज़ा लगा लिया करते थे कि व्यक्ति की उम्र कितनी थी, उसका वजन कितना था और तो और कितने लोग थे। यही वजह थी कि प्यार से लोग उन्हें पागी बुलाया करते थे। पागी का अर्थ होता है जो पैरों के निशान पढ़ ले।
रणछोड़दास के इस ख़ास हुनर के कारण ही बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक, वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस गाइड नियुक्त किया था। इस दौरान उनकी उम्र 58 वर्ष थी। रणछोड़ दास रबारी अपने परिवार के साथ भेड़ बकरी और ऊँट पालते थे।
रणछोड़दास पागी भारतीय सेना में हुए शामिल
इसके बाद रणछोड़दास पागी को भारतीय सेना में भी सेवा देने का मौका मिला। आगे चलकर उन्हें एक स्काउट के रूप में आर्मी में भर्ती किया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तानी सेना ने कच्छ क्षेत्र के कई गांवों पर कब्ज़ा कर लिया था। ऐसे में रणछोड़दास को भारतीय सेना की तरफ से जिम्मेदारी दी गई थी कि वे दुश्मन की एक्जैक्ट लोकेशन का पता लगाकर खबर करें।
मोनेकशॉ ने सौंपी अहम जिम्मेदारी
मालूम हो, रणछोड़दास पागी को यह जिम्मेदारी सौंपने वाले कोई और नहीं बल्कि भारतीय सेना के अध्यक्ष सैम मोनेकशॉ थे। मोनेकशॉ के नेतृत्व में ही भारत ने 1971 की लड़ाई जीती थी और पाकिस्तान को सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया था। बहरहाल, मोनेकशॉ ने अपनी ऑब्जर्बेशन पर विश्वास करते हुए पागी को दुश्मन के विषय में जानकारी प्राप्त करने की अहम जिम्मेदारी सौंपी थी।
पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़े ‘पागी’
भारतीय सेना अध्यक्ष के भरोसे पर खरे उतरते हुए पागी ने जंगल के अंधेरे में छिपे करीब 1200 पाकिस्तानी सैनिकों का पता लगाया था। इसके अलावा रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ के कारण उन्होंने सेना को निर्धारित समय से 12 घंटे पहले गंतव्य स्थान तक पहुंचा दिया था।
कहा जाता है पागी की सूझ-बूझ और दृढ़निश्चय की वजह से सेना को 1200 पाकिस्तानी सैनिकों के ठिकाने तक पहुंचने में मदद मिली थी। इसके बाद उन्होंने 1971 की लड़ाई में भी अहम भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में ‘पागी’ को सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ मोर्चे पर गोला-बारूद और हथियार लाने की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
जब पागी को मिला 300 रुपये का पुरुस्कार..
जानकारों के अनुसार, पाकिस्तान के पालीनगर पर की गई चढ़ाई में भारतीय सैनिकों को बड़ी कामयाबी हांसिल हुई थी। इस जीत का श्रेय पागी को ही जाता है। कहते हैं इस जीत के बाद मोनेकशॉ ने पागी को 300 रु का नकद पुरस्कार दिया था। इसके अलावा उन्हें उनके योगदान के लिए ‘संग्राम पदक’, ‘पुलिस पदक’ और ‘ग्रीष्मकालीन सेवा पदक’ जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
अंतिम दिनों में मोनेकशॉ करते थे रणछोड़दास पागी का जिक्र
डॉक्टरों के मुताबिक, मोनेकशॉ के अंतिम दिनों में उनकी जबान पर पागी का ही नाम रहता था। एक दिन बेहोशी की हालत में फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने उनका नाम पुकारा तो डॉक्टर्स ने भी पूछा कि ये पागी कौन है ? जिसके बाद होश में आने पर उन्होंने पागी के बारे में बताया। वे अक्सर पागी से जुड़े किस्सों को अस्पताल के अन्य मरीजों के साथा साझा किया करते थे।
बता दें, साल 2008 में तमिल नाडु के वेलिंगटन अस्पताल में मोनेकशॉ का एक गंभीर बीमारी के चलते निधन हो गया था। इसके बाद पागी ने साल 2009 में आर्मी से ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ ले ली थी। खबरों के अनुसार, 2013 में पागी ने 112 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था।
112 की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा
गौरतलब है, रणछोड़दास पागी का भारत की सुरक्षा को लेकर दिया गया अहम योगदान इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इतना ही नहीं, भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने उत्तर गुजरात के सुईगांव अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र पर मौजूद बॉर्डर पोस्ट का नाम पागी पर ही आधारित है। मालूम हो, हाल ही में अजय देवगन ने भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1965 और 1971 के युद्ध को लेकर भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया नाम से मूवी बनाई थी। इस मूवी में उनके अलावा संजय दत्त भी अहम भूमिका में नज़र आए थे। उन्होंने रणछोड़दास रबारी ‘पागी’ का किरदार निभाया था।