Monday, November 11, 2024

सरला ठकराल : मात्र आठ घंटे की ट्रेनिंग के बाद साड़ी पहनकर उड़ा दिया विमान, बन गई देश की पहली महिला पायलट

भारत में हम सब कुछ मुमकिन है। एक दौर था जब भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना भी कठिन होता था। उस दौर में एक 21 वर्षीय शादीशुदा महिला साड़ी पहने हुए प्लेन उड़ा कर अपने नाम एक रिकॉर्ड दर्ज कर रही थी। बात हो रही है भारत की पहली महिला, जिसने एयरक्राफ्ट उड़ाया था। सरला ठकराल (Sarla Thakral First Indian woman to fly aircraft) ने अपने इस कार्य से कई महिलाओं को प्रेरित किया था। आइये जानते है कौन है सरला ठकराल

विमान उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला

सरला ठकराल की इस कहानी ( Sarla thakral biography in hindi ) के बाद अगर हम वर्तमान की बात करें तो विश्व में सबसे ज्यादा महिला पायलेट भारत में ही हैं।( women pilot in India ) इस बखत भारतीय विमानन कंपनियों में करीबन 12.40% महिला पायलेट हैं। आज भारत की महिलाएँ सपनो में ही नही बल्कि असल में हवाओं में राज कर रहीं हैं तो उसका श्रेय सरला ठकराल (Sarla Thakral) को ही जाता है जिन्होंने सबसे पहले विमान उड़ाकर औरों के लिए मार्ग प्रशस्त किया था।

16 वर्ष की उम्र में पायलट से हुई शादी

8 अगस्त 1914 को दिल्ली के नामी परिवार में सरला ठकराल पैदा हुई थी। वेकिपेडिया के घी मंडी मदार गेट, अजमेर राजस्थान में सरला का पूरा परिवार रहता था। वे वहीं पली बढ़ी। अनुसार उन्हें घर के लोग प्यार से ‘मति’ कहकर पुकारते थे। सरला जब 16 वर्ष की थी तब उनकी शादी एक पायलट पी. डी. शर्मा से करा दी गई थी। जिस घर में सरला की शादी हुई उस घर के 9 सदस्य पायलेट थे। उनके पति पी डी शर्मा ने गौर किया कि सरला को विमानों को लेकर काफी रुचि है। वह विमानों और उनके उड़ने के विज्ञान के बारे में बहुत रुचि व ज्ञान भी रखती थी।

पति ने पायलट बनने के लिए किया प्रेरित

एक दिन सरला के पति ने उन्हें पायलेट बनकर विमान उड़ाने की सलाह दी। शुरू में सरला को लगा कि यह कोई मज़ाक है क्योंकि 1930 के दशक में महिलाएं विमान नही उड़ाते थीं। जब पति ने फिर वही बात की तो सरला को अंदाज़ा हो गया कि उनके पति असल मे यह कह रहे हैं। सरला को सबसे ज्यादा समाज के चार लोगों का भय खाए जा रहा था। उन्होंने मना कर दिया। आखिर बहुत मनाने पर वे मानी और उनके इस निर्णय से घर के अन्य सदस्य बेहद खुश थे।

सरला ठकराल

साड़ी पहनकर उड़ाया विमान

सरला ने फैसला तो ले लिया था लेकिन उसके लिए सबसे पहला कदम रखने का काम उनके ससुर ने किया। उन्होंने ने ही 1936 में सरला को पायलट ट्रेनिंग के लिए साहस दिया और उनका दाखिला फ्लाइंग क्लब में करवा दिया। जोधपुर फ्लाइंग क्लब के लिए बहुत कुछ नया होने जा रहा था। जहाँ पुरुष अपने यूनिफॉर्म में आकर ट्रेनिंग लेते हैं, अब वहाँ एक महिला साड़ी पहने उनके साथ विमान उड़ाने की तकनीक और कला सीखने आई थी। ट्रेनर ने सरला से बातचीत शुरू की। ट्रेनर के सवाल खत्म होते ही सरला फटाक से उनके जवाब बोल देती। ट्रेनर हैरान रह गया कि एक 20-21 साल की लड़की कैसे विमानों के बारे में इतना जान रही है ।

ट्रेनिंग के दौरान 8 घंटे के शिक्षण से ही ट्रेनर को सरला पर भरपूर विश्वास हो गया। जोधपुर से ट्रेनिंग लेने के बाद सरला ने 1936 में ही लाहौर से जिप्सी मौथ (Gypsy Moth) नाम का एक दो सीटर विमान उड़ाया था। उस वक़्त सरला एक बेटी की माँ भी बन चुकी थी। साड़ी में विमान उड़ाकर उन्होंने अपनी संस्कृति का मान भी रखा और महिलाओं को आगे आने के लिए जज्बा भी दिखाया।

पति के मौत के बाद उनकी खुशी के लिए जारी रखी ट्रेनिंग

फ्लाइंग टेस्ट समाप्त करने के बाद सरला को अपना ‘A’ सर्टिफिकेट लेने के लिए 1000 घंटे की फ्लाइंग पूरी करनी थी। महज 21 साल की उम्र में वे भारत की पहली महिला बन चुकी थी जिसने एक विमान हवे में उड़ाया हो। पहला सर्टिफिकेट लेने के बाद वे कमर्शियल सर्टिफिकेट लेने के लिए कमर कस चुकी थीं। उन्हें जोधपुर जाना था कि तभी खबर मिली कि उनके पति प्लेन हादसे में गुजर गए। वे कुछ दिनों तक गम में रहीं लेकिन उन्हें याद था कि उनके पति उन्हें विमान उड़ाते हुए देखना चाहते थे। सरला ने ट्रेनिंग की और सर्टिफिकेट लेने के बाद पायलट के रूप में अपना करियर बनाना चाहती थी तभी द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के कारण उन्हें वापिस जोधपुर से लाहौर आना पड़ा।

विभाजन के कारण लाहौर से भारत लौटी और डिजाइनिंग करने लगी

लाहौर आने के बाद सरला को विमानों से दूरी बनानी पड़ी और अपनी दो बच्चियों को पालने के लिये कुछ न कुछ करने का विचार बनाया। सरला ने लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स और चित्रकला का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने पेंटिंग और डिजाइनिंग पर फोकस क़िया। वे वहां अपना बिजनेस अच्छे से चला ही रहीं थीं कि विभाजन हो गया और उन्हें लाहौर से भारत में वापिस आना पड़ा। यहां आने के बाद सरला ने बिजनेस यहीं शुरू किया। उन्होंने ज्वेलरी और साड़ी तथा कपड़ो पर बेहतरीन डिज़ाइन बनाना शुरू किया। विजयलक्ष्मी पंडित जैसी महिलाओ को उनकी डिज़ाइन बेहद पसंद आईं अपने आखिरी दिनों तक वे इसी काम में लगी रहीं.

1948 में की थी दूसरी शादी

सरला ठुकराल ( Sarla Thukral ) का आर्य समाज पर बहुत विश्वास था। आर्य समाज के कारण समाज की कई कुरीतियां दूर हो रही थी। यहीं से उन्हें दोबारा शादी करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने 1948 में आर. पी. ठकराल से दूसरी शादी की और वैवाहिक सुख लिया। 15 मार्च 2008 को 93 वर्ष को आयु में भारतीय महिलाओं को वायु में उड़ने के सपने दिखलाने वाली महिला इस दुनिया को अलविदा कह गयी .

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