महाराष्ट्र के पुणे में स्थित शनिवार वाड़ा का निर्माण मराठा- पेशवा साम्राज्य को बुलंदियों पर ले जाने वाले बाजीराव पेशवा ने करवाया था । सन 1732 में 16110 रुपये की लागत से बनकर शनिवार वाड़ा तैयार हुआ था । उस वक्त के हिसाब से 16 हजार रुपये बडी रकम थी ।
शनिवार के दिन नींव रखने के कारण इसका नाम ‘शनिवार वाड़ा’ पड़ था। करीब 85 साल तक यह महल पेशवाओं के अधिकार में रहा था, लेकिन 1818 ईस्वी में अँग्रेजी शासन ने इसपर अपना अधिकार जमा लिया जिसके बाद 1947 में भारत की आजादी तक यह अंग्रेजो के कब्जे में रहा।
इस महल की 2 घटनाएं बहुत चर्चित है ।
18 वर्ष के राजकुमार की जान ली
30 अगस्त 1773 की रात को 18 वर्ष के राजकुमार नारायण राव की एक षड्यंत्र के तहत घेरकर महल में जान ले ली । 18 साल के नारायण राव मराठा साम्राज्य के नौवें पेशवा बने थे । राजकुमार ने जान बचाने के लिए महल में खूब कोशिस की , उन्होंने अपने चाचा को भी आवाज लगाई लेकिन सब प्रयास विफल रहे ।
शनिवार वाड़ा 1860 में और अब
बताया जाता है कि नारायण राव की चाची आनंदीबाई और चाचा उसके राजा बनने से खुश नही थे । राजकुमार की ह#त्या में चाची आनंदीबाई का ही हाथ बताया गया। स्थानीय कविदंतियो के अनुसार अमावस की रात को अब भी राजकुमार की आत्मा आवाज लगाती है।
शनिवार वाड़ा से जुड़ा दूसरा रहस्य
साल 1828 में शनिवार वाड़ा में रहस्यमयी तरीक़े से आग लग गयी । बताया जाता है कि शनिवार वाड़ा 7 दिनों तक जलता रहा । आग ने महल को बहुत नुकसान पहुंचाया । हालांकि आज तक यह एक रहस्य ही है कि इतनी भयंकर आग कैसे लगी ।
आग लगने के बाद शनिवार वाड़ा को श्रापित माना जाने लगा । कुछ लोग इसे राजकुमार नारायण राव का श्राप भी मानते थे ।
बाजीराव पेशवा के बनाये शनिवार वाड़ा में कुल 5 दरवाजे हैं। जिनमें पहला गेट दिल्ली दरवाजा कहलाता है तो दूसरे दरवाजे का नाम उनकी प्रेमिका मस्तानी के नाम पर मस्तानी दरवाजा है । तीसरा दरवाजा खिड़की दरवाजा, चौथे को नारायण दरवाजा और पांचवे को गणेश दरवाजा बोला जाता है ।
अंग्रेजो का कब्जा
85 साल तक ही शनिवार वाड़ा पेशवाओ के पास रहा । 1818 ईसवी में अंग्रेजी हुकूमत ने इस पर कब्जा जमा लिया । जिसके बाद आजादी के बाद ही उनका कब्जा हटा ।