भारतीय संत-महात्मा अपने कठोर तप की सहायता से विश्वविख्यात हुए। कई ऐसे संत हैं भारत मे जिनके दर्शन के लिये विदेशों से लोग आते हैं। वे संतों के समक्ष बैठकर ज्ञान अर्जित करते हैं और शांति महसूस करते हैं। भारतीय संतों ने योग और तप में ही विश्वास किया है। इन्हें कठिन दिनचर्या और जप करना पड़ता है तब कहीं जाकर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है। संसार के मोह त्यागने पड़ जाते हैं और सिर्फ मन की आवाज़ में खुद को खोजना पड़ता है।

सियाराम बाबा 109 बरस के हैं
आज हम एक ऐसे ही संत की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने अपने कठोर तप से पूरे विश्व मे ख्याति पाई है। सियाराम बाबा (Saint Siyaram Baba) एक ऐसे संत हैं जिन्होंने कई सालों तक कठोर तपस्या से अपने शरीर को हर मौसम के अनुकूल बना लिया है।
सियाराम बाबा मध्यप्रदेश राज्य के खरगोन जिले के नर्मदा तट पर स्थित भट्याण आश्रम में रहते है । संत श्री सियाराम बाबा अपनी महिमा से कई लोगों के कष्टों का निवारण करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बाबा की उम्र 109 वर्ष है। और बताने वाले उनके उम्र के बारे में अलग-अलग बातें बताते हैं। कुछ कहते हैं कि बाबा 90 से 100 वर्ष के बीच हैं तो कोई कहता है कि बाबा 120 वर्ष से भी ज्यादा के हो चुके हैं।

12 वर्षों से मौन धारण करने के बाद मुख से निकला पहला शब्द बन गया उनका नाम
बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण किया था। मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने सबसे पहले ‘सियाराम’ शब्द का उच्चारण किया। हनुमान भक्त होने के नाते उनके दिल मे भी राम-सीता बसते हैं। तभी से उनका नाम सियाराम बाबा पड़ गया और वे उसी नाम से प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि बाबा ने खडेश्वर तप भी किया है। इस तप में खड़े होकर ही दिन के सारे काम करने पड़ते हैं। जिस दौरान बाबा खडेश्वर तप में लगे हुए थे, उसी दौरान नर्मदा में बाढ़ आ गया था। नर्मदा का पानी बाबा के नाभि तक पहुंच गया था लेकिन बाबा ने तप जारी रखा।
हनुमान के परमभक्त हैं बाबा सियाराम (Baba Siyaram)
सियाराम बाबा हनुमान के उपासक हैं। वे सुबह से लेकर शाम तक हनुमान जी नाम से खुद को जोड़े रखते हैं। बाबा दिन में रामचरितमानस मानस का पाठ करते मिल जाएँगे। आश्रम के लोग बताते हैं कि बाबा का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। उन्होंने ज्यादा पढ़ाई नही की है। एक संत से मिलने के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। उस संत के साथ रहकर बाबा ने सांसारिक मोह माया को त्यागने का निर्णय कर लिया। उन्हें समझ आ गया कि जीवन का असली सदुपयोग ईश्वर की शरण मे जाने से ही हो पायेगा। उन्होंने घर-बार त्याग दिया और हिमालय चले गए। वहां कई दिनों तक कठोर तप करते रहे। बाबा के जीवन के कई वर्ष आज भी लोगों के लिए रहस्य बने हुए हैं। कोई नही जानता कि उन दिनों बाबा कहाँ थे और किस हाल में थे।

समाज कल्याण कार्यों में करते हैं योगदान
सियाराम बाबा अपने समाज कल्याण कार्य के लिए भी जाने जाते हैं। आश्रम के आस-पास के इलाकों में होने वाले निर्माण कार्यों में वे अपनी पूरी भागीदारी देते हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि नर्मदा घटा की मरम्मत और बारिश से बचने के लिए शेड निर्माण के लिए उन्होंने 2 करोड़ 57 लाख रुपये दान में दिए थे। वहीं एक बन रहे मंदिर के शिखर निर्माण कार्य के लिए अपनी ओर से 5 लाख रुपये की सहायता राशि भेजी थी।
दान में 10 रुपया ही लेते हैं बाबा
बाबा के दर्शन करने वाले लोग उन्हें दान में ढेरों पैसे देने को तैयार हैं लेकिन बाबा ने कभी भी किसी से 10 रुपये से ज्यादा नही लिए। कई विदेशी उनसे मिलकर खुश हुए और पैसे देने चाहे लेकिन बाबा ने दस रुपया लिया और बाकी पैसे लौटा दिए।
ध्यान साधना के बल पर बाबा ने खुद को इतना मजबूत बना लिया है कि कड़ाके की ठंड और दहकती गर्मी भी उनका कुछ नही बिगाड़ सकती। वे एक छोटे से लंगोट में ही सारे मौसम निकाल देते हैं। न उन्हें कूलर-ऐसी की ज़रूरत पड़ती है और ना ही कम्बल स्वेटर की। बाबा शतक पार कर चुके हैं लेकिन आज भी स्वालंबी है। वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और कई सारे काम खुद करते हैं।