कोरोना की मार से कोई नहीं बचा. पढाई से लेकर नौकरी तक हर चीज़ पर फर्क पड़ा है. कोरोना से,लोगो के मन में अपनों को खोने का डर और लोगो ने अपनों को खोया भी है. कुछ संवर गए तो कुछ हिम्मत छोड़ घर बैठ गए. संवरने वाले लोगो की बात यदि की जाए तो आपके ज़हन में नौजवान ही आएंगे. इन नामों में एक नाम उषा गुप्ता का भी है. 88 साल की नानी ने जज़्बे के चलते कुछ ऐसा कर दिखाया जो शायद ही कोई नौजवान कर पाए.
कोविड के चलते खोया पति को
बुढ़ापे में जीवन साथी का गुज़र जाना मानो मंज़िल की चौखट से लौट जाना. दिल्ली के बत्रा हॉस्पिटल में उषा और उनके पति दोनों ही कोरोना पॉजिटिव होने के चलते 27 दिन से एडमिट थे, इस बीच ज़िन्दगी और मौत की जंग में उषा के पति का निधन हो चूका था, 6० सालो का साथ पल भर में छूट गया था. रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल में उषा के पति को दो बार ऑक्सीजन की कमी आयी थी, दूसरी बार जब ऑक्सीजन की कमी आयी तब हालात कुछ यूँ बिगड़ गए कि उषा के पति का देहांत हो गया.
उषा के अनुसार 2021 में वे और उनके पति दोनों ही पॉजिटिव पाए गए थे, उनकी आँखों के सामने कई युवा तड़प रहे थे. भर्ती होने के तीन हफ़्तों के भीतर ही उनका देहांत हो गया था, 6 दशक साथ बिताने के बाद अचानक वे खुद को अकेला पा रहीं थीं, एक तरह से उन्होंने हिम्मत छोड़ दी थी. उषा जब अस्पताल में थीं, तब उनके आस पास मायूसी, दुःख ही था. 2021 के दौर में जब ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो रही थी, वह सब किसी जंग से कम नहीं था. अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए लोगो का आपस में लड़ना दिल पर चोट लगने जैसा था, आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार बाकि लोगो के मुताबिक ज़्यादा पीड़ित थे.
PICKLED WITH LOVE
ऐसे में क्या करना चाहिए क्या नहीं वह सब उनकी समझ से परे था. तब उन्हें जो सही लगा, या जो उषा कर सकती थीं उन्होंने किया. एक बुज़ुर्ग गृहणी के हाथ में कुछ नहीं, खाना बनाने की कला होती है. जिसका भरपूर फायदा उषा ने उठाया. कहते है जब इंसान बैठ जाता है तब वह खुद को कमज़ोर और लाचार समझने लगता है. ऐसे में उषा की नातिन ‘डॉक्टर राधिका बत्रा ने उन्हें कोविड रिलीफ वर्क के लिए कहा, उनका मान ना था की ऐसा करके वे न सिर्फ व्यस्त रहेंगी बल्कि दुसरो की मदद भी कर सकेंगी.
मात्र दो दिन में नानी और उनकी नातिन ने सभी ज़रूरी जानकारी जैसे ताज़ी सामग्री, बोतल खरीदना, लेबल की प्रिंटिंग वगेरह वगेरह सभी इकट्ठी करी और नातिन की प्रेरणा और नानी के जज़्बे के साथ शुरुआत हुई PICKLED WITH LOVE की. शुरुआत केवल दोस्तों और रिश्तेदारों से खरीददारों के रूप में हुई थी, शुरुआत में 180 चटनी की बोतलें बिकी थीं, एक बार में नानी 10 किलोग्राम आचार बना पातीं है.
मुनाफे का हिस्सा जाता है NGO के नाम
88 की उम्र में न सिर्फ खुद को संभाला बल्कि दुसरो के लिए मिसाल भी है. नानी, अपना बिजनेस खड़ा कर मुनाफे का हिस्सा NGO के बच्चों के नाम करतीं है. हालाँकि उम्र के साथ बढ़ती दिक्कतें जैसे कमर दर्द आदि, इन सबके साथ साथ वे कई किलो आम का आचार बनातीं है, इन सबके बावजूद जब उनको पता चला के उनकी मेहनत से किसी बच्चे की ज़िंदगी संवर रही है, लोगो को हिम्मत मिल रही है, तब उन्हें काफी ख़ुशी और संतोष मिला.