Sunday, March 16, 2025

सुनील दत्त : बस कंडक्टर से लेकर रेडियो में किया काम,आग में कूदकर बचाई थी नरगिस की जान, इस वजह से असली नाम त्यागकर बने सुनील दत्त

सुनील दत्त को इस कारण त्यागना पड़ा असली नाम

6 जून 1929 को जन्मे सुनील दत्त का असली नाम बलराज दत्त था। 25 मई 2005 को जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा तब वे युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय संभाल रहे थे। 1955 की फ़िल्म ‘रेलवे प्लेटफार्म’ से उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी। फिल्मों में आने से पहले वे रेडियो में कार्य करते थे। उर्दू भाषा मे उनकी कमांड होने के कारण उस वक़्त के फेमस रेडियो सिलोन में एक जॉकी के रूप में काफी पॉपुलर हुए।

सुनील दत्त ( source -social media )

निर्देशक सहगल ने उनके आवाज़ से प्रभावित होकर एक फ़िल्म में रोल आफर किया। उन्हीं निर्देशक ने सुनील दत्त को उनका स्क्रीन नाम दिया। दरअसल उस समय के मशहूर कलाकार बलराज साहनी से उनका नाम मेल खा रहा था। इस वजह से सुनील दत्त उनका नाम बना।

आग में कूदकर बचाई थी नरगिस की जान

1957 में आई फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ सुनील दत्त के लिए करियर और पर्सनल दोनों पॉइंट ऑफ व्यू से खास रही थी। इस फ़िल्म में नरगिस सुनील दत्त की माँ की भूमिका में थी। सुनील ने फ़िल्म में उनके छोटे बेटे की भूमिका निभाई थी जो गुस्सैल स्वभाव का रहता है और बाद में डाकू बन जाता है। फ़िल्म का वह सीन आज भी याद है जब बिरजू की मां अपने ही बेटे पर गोली चला देती है।

मदर इंडिया फ़िल्म का एक दृश्य

कहा जाता है कि मदर इंडिया के सेट पर आग लग गयी और सुनील दत्त ने खुद की परवाह किये बगैर नरगिस को बचाया। वहीं से दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया। दोनों ने 1958 में शादी कर ली और उन्हें तीन बच्चे हुए। मदर इंडिया इतनी बड़ी हिट हुई कि भारत की ऐतिहासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है। यह फ़िल्म सुनील दत्त के करियर में मील का पत्थर साबित हुई। इसी फिल्म में उनके सहायक अभिनेता राजेन्द्र कुमार बाद में उनके समधी बने। सुनील की बेटी नम्रता ने राजेन्द्र के बेटे कुमार गौरव से शादी की थी।

अस्पताल में सुनील दत्त के साथ नरगिस ( photo source – social media)

आर्थिक तंगी के कारण बस कंडक्टर का काम भी किया

सुनील दत्त जब 5 वर्ष के थे तभी उनके सिर से पिता का साया हट गया था। उनकी मां कुलवंती देवी ने अपने बेटे की परवरिश की। उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए सुनील दत्त मायानगरी मुम्बई आ पहुंचे थे। यहां वे पढ़ाई के साथ पार्टटाइम जॉब भी करते थे। जब सुनील को ज्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने मुंबई के लोकल बसों में कंडक्टर का काम भी किया। उन दिनों के छोटे-मोटे कार्यों से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। उन्हें पता चला कि संघर्ष के दम पर ही लोग आगे बढ़ते हैं।

परिवार के साथ सुनील दत्त

बेटे के कारण की थी मुन्ना भाई एमबीबीएस

सुनील दत्त की आखिरी फ़िल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस कई लिहाज से मायने रखती है। 1993 के बाद वे वापिस कोई फ़िल्म करने को तैयार हुए थे तो सिर्फ अपने बेटे के लिए। संजय दत्त की बायोपिक में दिखाया गया था कि संजय दत्त इस फ़िल्म को नही करना चाहते थे। जब सुनील दत्त ने कहानी सुनी तो उन्हें लगा कि ये फ़िल्म संजय को ज़रूर करनी चाहिए। उस फिल्म में आज के दमदार एक्टर नावजुद्दीन सिद्दकी और सुनील दत्त के बीच फिल्माया गया सीन आज बहुत वायरल है। वह फ़िल्म संजय के करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्मो में से एक मानी जाती है।

इस फ़िल्म को बनकर रिलीज होने में लगे 15 साल

मधुबाला को बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियो में से एक माना जाता है। 1956 में सुनील दत्त के साथ उनकी एक फ़िल्म ‘ज्वाला’ की शूटिंग शुरू की गई। फ़िल्म के निर्देशक थे एम. वी. रमन। फ़िल्म में सोहराब मोदी, प्राण, ललिता पवार और डेविड अब्राहम सहायक किरदारों में थे। फ़िल्म की आधी शूटिंग ही हुई थी और मधुबाला की तबियत बिगड़ने लगी। उनके दिल मे सुराख हो जाने के कारण वे फ़िल्म की शूटिंग नही कर पाई। ज्वाला फ़िल्म को बनने में काफी साल लग गए। 1 जुलाई 1971 को यह फ़िल्म रिलीज हुई और बुरी तरह से पिट गयी। कहा जाता है कि मधुबाला के बॉडी डबल से यह फ़िल्म पूरी की गई थी।

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