Tuesday, January 14, 2025

बनारस का इकलौता वकील जो 43 सालों से संस्कृत में लड़ रहा मुकदमे, जानिये इसकी वजह

वारदात और अदालत के बीच के सूत्रधार को वकील कहते हैं। यही वो लोग होते हैं जो समाज को कोर्ट के जरिये न्याय दिलाते हैं। कहा जाता है कि वकील जैसे देश में पहुंचते हैं वैसी ही बोली अपना लेते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक वकील के विषय में बताने जा रहे हैं जो पिछले 43 सालों से भारत की सांस्कृतिक भाषा यानी कि संस्कृत में मुकदमें लड़ रहा है।

संस्कृत में देते हैं दलील

जी हां, आपने सही सुना यह वकील संस्कृत में दलीलें पेश करता है। यहां तक कि इनका वकालतनामा, शपथ पत्र, प्रार्थना पत्र आदि सब कुछ संस्कृत भाषा में ही जमा होता है।

बता दें, इनका नाम श्यामजी उपाध्याय है। ये बनारस की जिला कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। ये दुनिया के इकलौते ऐसे वकील हैं जो संस्कृत में अपना केस लड़ते हैं। खास बात यह है कि पिछले 43 सालों से ये ऐसा करते आ रहे हैं।

पिता से मिली प्रेरणा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, श्यामजी उपाध्याय के मन में देववाणी कही जाने वाली संस्कृत के प्रति प्रेम की भावना उनके पिता की वजह से उजागर हुई थी। एक इंटरव्यू के दौरान श्यामजी ने बताया था कि जब वे 10 साल के थे उस वक्त वे अपने पैतृक शहर मिर्ज़ापुर में अपने पिता के साथ रहते थे। एक दिन वे अपने पिता के साथ कहीं जा रहे थे। तभी रास्ते में उनके पिता के कुछ बिहारी दोस्त मिल गए, वे भोजपुरी में बात कर रहे थे। दोस्तों से बातचीत के बाद उनके पिता और वे आगे चल दिए। इस दौरान श्यामजी के पिता ने उनसे कहा कि कितना अच्छा होता कि लोग संस्कृत में बात करते।
पिता की यह बात उस 10 वर्ष के अबोध बालक के दिमाग में इस कदर घर कर गई जिसके बाद उसने ठान लिया कि वह संस्कृत का ज्ञान लेगा और उसका प्रचार करेगा।

प्रभावित हुए शिक्षक

जानकारी के अनुसार, अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही विद्यालय से पूरी करने के बाद श्यामजी ने संम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से बौद्ध दर्शन में ग्रेजुएशन किया। इस दौरान संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रो.जग्गनाथ उपाध्याय ने श्यामजी की संस्कृत के प्रति रुचि देखते हुए उन्हें शिक्षक बनने की सलाह दी।

1978 में लड़ा पहला मुकदमा

अपने गुरु की सलाह पर उन्होंने एक साल तक पढ़ाया भी लेकिन उनका मन नहीं लगा। वे कुछ और करना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने हरिश्चचन्द्र महाविद्यालय से वकालत की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने बनारस की जिला अदालत में साल 1978 में प्रैक्टिस चालू की। यही वो साल था जब श्यामजी ने अपना पहला मुकदमा संस्कृत में लड़कर सभी को हैरान कर दिया था।

भारत सरकार ने किया सम्मानित

गौरतलब है, संस्कृत के विस्तार के लिए वे निरंतर प्रयासरत रहते हैं। इसीलिए वे हर साल 4 सिंतबर को संस्कृत दिवस के रुप में मनाते हैं। श्याम जी उपाध्याय के इस संस्कृत प्रेम के लिए भारत सरकार द्वारा संस्कृत मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

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