अपना काम या बिज़नेस शुरू करना कोई बच्चों का खेल नहीं होता. मेहनत और लगन लगती किसी काम को शुरू करने के लिए और उसे शिखर तक पहुंचाने के लिए. बिज़नेस शुरू करते वक़्त लोगो में जोश और उमंग भरा रहता है किन्तु कठिनाइयां आने पर वही जोश और उमंग फीका पड़ जाता है. आइये जानते है कुछ ऐसे ब्रांड्स के बारे में जिन्हे आज़ादी से पहले शुरू किया गया, बंटवारे के भार के बाद भी मेहनत और लगन के चलते आज दुनिया में बना चुके है अपना नाम.
1 महिंद्रा एंड महिंद्रा
आनंद महिंद्रा की महिंद्रा एंड महिंद्रा की स्थापना 1945 में हुई थी, उस समय नाम महिंद्रा एंड मुहम्मद कंपनी था. कंपनी को दो भाई जगदीश महिंद्रा और कैलाश चंद्र महिंद्रा ने अपने साथी मलिक गुलाम मुहम्मद के साथ खड़ा किया था. इनका सपना था की महिंद्रा एंड मुहम्मद कंपनी आसमान की ऊंचाइयों को छुए, पर बंटवारे के चलते ऐसा हो न सका हो न सका. देश के बंटवारे के साथ ही लोग भी बंट गए थे और कंपनियां भी. पाकिस्तान बनने के बाद गुलाम मुहम्मद पाकिस्तान चले गए और वहां के पहले वित्त मंत्री बने और उसके बाद पाकिस्तान के तीसरे गवर्नर जनरल.
इन सबके बावजूद महिंद्रा भाइयों ने हिम्मत नहीं छोड़ी, और महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी को शिखर पर पहुंचाया, आज महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप 22 बिलियन के मालिक है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने न सिर्फ खुद ऊंचाइयां छुई बल्कि अपने साथ साथ 2.5 लाख लोगो रोज़गार भी दिया.
2 बिसलेरी
बिसलेरी शुरुआती दौर में दवा बेचने की कंपनी थी, जिसे एक इटैलियन बिज़नेस मैन FELICE BISLERI ने शुरू किया था. निधन के बाद कंपनी को उन्ही के परिवार के सदस्य रोजिज ने खरीद लिया था, अपने दोस्त के साथ रोजिज ने नए नए व्यापार का स्वाद लेने की सोची. 1965 में रोजिज के दोस्त ख़्हुशरू ने मुंबई के ठाणे इलाके में पहला पानी का प्लांट रखा. बिसलेरी कंपनी ने मैदान में बिसलेरी वाटर और बिसलेरी सोडा के साथ शुरुआत करी, उन दिनों बिसलेरी पानी की बोतल की कीमत 1 रुपय हुआ करती थी और बिसलेरी तब सिर्फ ऊँचे घरानो तक और फाइव स्टार होटल्स तक ही सीमित थी.
3 फेविकोल
आज़ादी के बाद जब फेविकोल के मालिक बलवंत पारेख लकड़ी के कारखाने में काम करते थे उन्होंने तब देखा की दो लकडिओ को जोड़ने के लिए जानवर की चर्बी से बनी गोंद का इस्तेमाल होता था, जिसे बनाने के लिए बहुत देर तक गर्म किया जिसके दौरान उसमे से बहुत बदबू आती है और कर्मचारियों का साँस तक लेना मुश्किल होता है. वह सब देख कर, बलवंत ऐसी गोंद बनाना चाहते थे जिसमे ज्यादा मेहनत भी न लगे और न ही इतनी गंद आये. जानकारी इक्कठी करने के बाद बहुत मुश्किल से उन्हें रसायन से फेविकोल बनाने का तरीका जान ने में आया. इसके बाद 1959 में पिडिलाइट ब्रांड ने देश को खुशबु वाली सफ़ेद फेविकोल दी.
4 ओबेरॉय होटल्स
पिता की मौत के बाद, नौकरी के लिए दर दर भटके थे मोहन सिंह ओबेरॉय लेकिन किस्मत सोई हुई थी. एक जूता फैक्ट्री में काम मिला पर बदकिस्मत वह बंद होगयी. जैसे तैसे किस्मत ने उन्हें शिमला बुलाया, घर से मात्र 25 रूपए लेकर निकले थे, शिमला के होटल में 40 रूपए की तनख्वाह पर काम करने के लिए.
कहते है किस्मत पलट ते देर नहीं लगती, ऐसा ही कुछ मोहन सिंह ओबेरॉय के साथ भी हुआ, जिस होटल में क्लर्क की नौकरी कर रहे थे उसी होटल को नगद 25000 में खरीद लिया और मौत से पहले खड़ा किया उद्योग ओबेरॉय होटल का सम्राज्य.
5 डाबर
एस.के बर्मन द्वारा 1884 में स्थापित डाबर आयुर्वेदिक दवाइयां बनाती थी. ‘डाबर’ नाम डॉक्टर बर्मन के नाम से ही लिया गया है डॉक्टर का ‘डा’ बर्मन का ‘बर’, उन्हें पता था की एक दिन डाबर आसमान की ऊंचाइयां छुएगी, कुछ सालों में ही 1896 में डाबर काफी लोकप्रिय हो गया था, जिसके चलते उन्हें फैक्ट्री खड़ी करनी पड़ी. उन दिनों बर्मन साहब अपने ही हाथों से कूट कर दवाइयां व अन्य पदार्थ बनाया करते थे.
सब अच्छा चल रहा था डाबर सफलता की सीढ़ी चढ़ रहा था कि 1907 में बर्मन साहब की मौत के बाद सारा कारोबार उनकी अगली पीढ़ी पर आ गया. कोलकत्ता का डाबर आज दिल्ली के रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर पर आकर रुका है.