इस बात से तो आप सब वाकिफ ही हैं कि कुतुब मीनार को भारत की सबसे ऊंची मीनार का दर्जा प्राप्त है। इसका निर्माण प्रथम मुगल शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन 1193 में करवाया था। हालांकि, वह इसका आधार ही बनवा पाया था और उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसकी तीन मंजिलों का निर्माण करवाया था। सन 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने इसकी पांचवी मंजिल बनवाई थी।
बलुआ पत्थर से बनी इस मीनार पर कुरान की आयतों की नक्काशी की गई है। इस मीनार का इतिहास काफी रोचक रहा है इसलिए इस विषय में फिर कभी विस्तार से बात करेंगे।
आज हम आपको कुतुब मीनार से जुड़ी एक ऐसी घटना के विषय में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
कहा जाता है कि कपूरथला की रानी तारा देवी ने कुतुब मीनार की सबसे ऊपरी मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आजादी से ठीक एक साल पहले 1946 में तारा देवी ने दिल्ली स्थित ऐतिहासिक मीनार से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। इस घटना से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया था। इतना ही नहीं उन्होंने अपने दो कुत्तों के साथ आत्महत्या की थी।
जानकारी के अनुसार, 9 दिसंबर 1946 को रानी तारा देवी ने एक टैक्सी बुक की थी। इसपर वे अपने दो कुत्तों के साथ सवार होकर कुतुब मीनार पहुंची। यहां कार से उतरने के बाद उन्होंने अपना पर्स ड्राइवर को दिया और अपने कुत्तों के साथ कुतुब मीनार के भीतर जा पहुंची। इसके बाद वे ऊपरी मंजिल पर पहुंची और कुछ ही पल में उन्होंने यहां से छलांग लगा दी।
बताया जाता है कि ड्राइवर जब तक सबकुछ समझ पाता तब तक वे मर चुकी थीं और उनके कुत्तों की भी मौके पर ही मौत हो गई थी। इसके बाद जब ड्राइवर ने उनका बैग खोलकर देखा तो उससे जो सामान मिला उससे उनकी पहचान का पता चला।
गौरतलब है, तारा देवी ने आत्महत्या क्यों की थी इस बात का तो आज तक पता नहीं चल पाया है। कहा जाता है कि कपूरथला के राजा जगजीत और रानी तारा देवी के बीच रिश्ते तल्ख थे। शादी के कुछ सालों बाद ही दोनों की लड़ाई शुरु हो गई थी यही कारण था कि राजा जगजीत और रानी तारा देवी एक दूसरे से अलग रहने लगे थे।
बता दें, रानी तारा देवी का असली नाम यूजेनिया मारिया ग्रोसुपोवै था। उनकी मुलाकात राजा जगजीत से फ्रांस में हुई थी। इस दौरान दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ गए थे। तभी राजा ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसको उन्होंने स्वीकार कर लिया था।