यूँ तो भारत में हर त्यौहार को दिल खोल कर मनाया जाता है, फिर चाहे मुस्लिम की ईद हो या हिन्दुओं की दिवाली. इन सबके बावजूद होली एक ऐसा त्योहार जो हर कोई ख़ुशी और उल्लास से मनाता है, होली के दिन दुश्मन भी एक दूसरे को रंग लगाकर एक दूसरे को बधाई देते हुए गले लगा लेते है. ऐसे में झारखण्ड के एक गाँव में आज होली मानना अपशगुन माना जाता है.
झारखण्ड के बोकारो जिले में दुर्गापुर नाम का एक गाँव है, जहा लोगो का यह मान ना है कि यहाँ के लोगों ने 100 साल से आज तक होली नहीं मनाई. ऐसा माना जाता है कि यहाँ के राजा रानी की मौत होली के दिन हुई थी जिस वजह से आज तक यहाँ के लोगो ने होली नहीं मनाई और हली के रंगो को अपशगुन माना जाता है.
गाँव के आस पास रहने वाले आदिवासी, अल्पसंख्यक और सभी को मिलाकर करीब 10 हजार लोग रहते है, जिनके मन में उनके शासकों के लिए आज 300 साल बाद भी वही सम्मान है, कुछ लोग यह भी कहते है कि दुर्गापुर के लोगों ने अन्धविश्वास के चलते होली नहीं मनाई.
कैसे हुई थी राजा रानी की मौत
वहां के लोगो के अनुसार 1724 में होली से एक दिन पहले रामगढ राजा दलेल सिंह के सेनापति झलादा से रानी के श्रृंगार का सामान, साड़ी खरीद, दुर्गापुर के रास्ते में थे. इस दौरान दुर्गापुर के महाराज दुर्गा प्रसाद की सेना द्वारा वे बंदी बनाये गए. यह सब जानकर रामगढ़ के राजा क्रोधित हो उठे और होली के दिन दुर्गापुर की चढ़ाई करने लगे. दोनों ही तरफ से पराक्रम शुरू हुआ और घमासान युद्ध हुआ जिसके नतीजे में दुर्गापुर के राजा दुर्गा प्रसाद की मौत होगयी.
राजा की मौत की खबर सुनकर कर रानी ने भी विलाप में नदी में कूद कर आत्मदाह कर दिया. बस इसी के चलते होली के दिन अपने राजा और रानी के मौत के शोक में आज तक दुर्गापुर के लोगो ने 100 साल से होली नहीं मनाई.