जातिवाद, भेदभाव भारत में काफी पहले से चलता आ रहा है, भारत में आज़ादी से पहले के समय से ही छुआछूत जैसे कण थे, जिसे मिटाने के लिए जड़ से ख़त्म करने के लिए महात्मा गाँधी ने एड़ी से छोटी तक का ज़ोर लगा दिया था, महात्मा गाँधी के विचारों से न केवल भारत के नागरिक प्रेरित थे बल्कि हिन्दुस्तान के बाहर की आवाम भी महात्मा गाँधी से काफी प्रेरित थी, उन्ही में एक नाम मार्टिन लूथर किंग जूनियर का भी आता है, उन्होंने अमेरिका में हो रहे जातिवाद और काले गोरे के भेद भाव को ख़त्म करने के लिए कई आंदोलन करे, वे महात्मा गाँधी के विचारों में विशवास रखने वाले थे.
उनकी ज़िन्दगी के कई किस्से सुने होंगे लेकिन एक किस्सा है जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हों, ख़ास बात यह की यह किस्सा भारत का है, 1959 में सर्दियां शरू हो रहीं थी तब उन्होंने भारत में विज़िट किया था, विज़िट काफी रोमांचक था और साथ ही कुछ ऐसी घटनाएं भी हुई जिनकी शायद ही उन्हें उम्मीद थी.
बॉम्बे एयरपोर्ट पर अपनी पत्नी और साथी एक्टिविस्ट के साथ मार्टिन लूथर किंग को कोई और नहीं स्वयं पंडित ज्वाहरलाल नेहरू लेने गए थे, सूत्रों के अनुसार यह माना जाता है कि तब उन्होंने मीडिया को यह कहा था की ‘मै बाकि देशों में एक यात्री के तौर से जाता हूँ, लेकिन भारत में मै एक तीर्थ यात्री के तौर से आया हूँ’. भारत आना, यहाँ कि ज़मीन का एहसास करना, वह ज़मीन जिसे अंग्रज़ो कि गुलामी से आज़ाद करवाने के लिए न जाने कितनो का खून बहा, यह सब मार्टिन का एक सपना था.
एक अफ्रीकन पत्रकार इसाबेल वीकरसन के मुताबिक, मार्टिन भारत कि उस पिछड़ी आबादी से मिलना चाहते थे जिनके लिए उन्होंने छुआछूत जैसे ज़िक्र सुने थे, उनके मन में उस आबादि के लिए दया कि भावना थी जिन्हे भारत की आज़ादी के बाद पीछे छोड़ दिया गया था.
भारत में आते ही पहले हफ्ते में उन्होंने एक चीज़ जान ली थी कि भारत उसे ट्रैन के पीछे भाग रहा है जो अमेरिका में उनके लोगो में थी.
भारत में आकर पहले पांच हफ्तों में से एक दौरा उन्होंने अपनी पत्नी के साथ केरला के त्रिवन्द्रम (तिरुवंथमपुरम) का भी लगाया, वह उन्होंने एक विज़िट केरला के एक हाई स्कूल का भी लगाया वहाँ उन्होंने केरला के मुखयमंत्री EMS नम्बुदीरीपद के साथ लंच किया था.
स्कूल में विज़िट के दौरान जब वे बच्चों को करने के लिए उठे तब वहां के स्कूल प्रिंसिपल ने कुछ अनूठे ढंग से उनका परिचय वहां मौजूद लोगो से कराया, ‘ बच्चो, मै आपको यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका से आये अछूत मित्र से मिलवाना चाहता हूँ’ उन्होंने अपने उपदेश में इस दिन का ज़िक्र करते हुए कहा है कि ‘मुझे बच्चों के सामने यूँ अछूत कहा गया जिसका मुझे बहुत बुरा लगा और मैं उस बात से नाराज़ भी हूँ’.
यह वह दन था जब मार्टिन लूथर किंग जूनियर क यह एहसास हुआ था कि अमेरिका में हो रहा भेदभाव भारत के जातिवाद से अलग नहीं है.
जो कि सही भी था, वह आदमी जो दुनियां लांघ कर भारत आया, प्रधानमंत्र के साथ भोजन किया, वह प्रिंसिपल के द्वारा भेदभाव का ताना खाने लायक नहीं था.