कानपूर की रहने वालीं डॉक्टर मधुरिमा सिंह बेटी ने बेटी अक्षरा और बेटे आरव दोनों को डॉक्टर बनाने का सपना देखा था. दोनों को अपना भविष्य बनाने के लिए यूक्रेन से MBBS करने के लिए भेजा था, दोनों साथ रहते और पढाई किया करते थे लेकिन रूस और यूक्रेन के युद्ध में न सिर्फ यह सपना टूटा बल्कि साधारण जीवन व्यतीत करना भी मुश्किल कर दिया.
बेटे के छूटने के गम में भर आयी आंखें
अक्षरा और उसके भाई आरव ने जैसे तैसे खुद को खारकीव स्टेशन पर पहुंचाया और ट्रैन में बैठने से पहले ही वह धमाका हुआ जिसके चलते भाई आरव स्टेशन पर ही छूट गया. भगदड़ और भीड़ के चलते अक्षरा ने अपने भाई को ढूंढने की काफी कोशिश करी मगर वह नाकाम रही. अक्षरा को जब पोलैंड से दिल्ली लाया गया तब उसकी माँ के चेहरे पर बेटी के लौटने की ख़ुशी के साथ साथ बेटे के ना आने का गम भी साफ़ नज़र आ रह था. रोते हुए बिटिया को गले लगाया तो माँ ने पूछा की तुम तो आ गयीं बेटी, भाई को कहा छोड़ आयीं, उसको साथ क्यों नहीं लायीं, भाई कैसे छूट गया, यह सवाल पूछते पूछते माँ की आँखों में आंसू छलक आये.
खली बेटे की नामौजूदगी
जहा एक तरफ भारत सरकार अपने छात्रों को यूक्रेन से निकलने में जुटी थी वहीं एक सरकार के निर्देश अनुसार छात्र खुद को खारकीव से निकलने में जुटे हुए थे. छात्र पैदल ही खारकीव स्टेशन पहुंचने की कोशिश में थे, जिनमे अक्षरा और आरव भी शामिल थे. दोनों ने स्टेशन तक की दूरी पैदल ही तय करी और मेहनत सफल भी रही लेकिन अचानक हुए स्टेशन पर बम धमाके से स्टेशन पर भगदड़ मची और दोनों भाई बहन अलग हो गए.
अक्षरा यादव के अनुसार भाई ने मुझे तो ट्रेन में चढ़ा दिया लेकिन वे खुद स्टेशन पर ही रहे और मुझसे बिछड़ गए. पोलैंड पहुंचकर अक्षरा का मोबाइल बंद हो गया था जिस से वे अपने भाई से बात भी नहीं कर पायीं. पोलैंड से दिल्ली आने में कुल 3 दिन समय लगा और रविवार वाले दिन वे अपने घर पहुंच सकीं. अक्षरा को इस बात का मलाल है की वे अपने भाई को वहीं छोड़ आयीं, साथ ही परिवार भी अब तक अपने बेटे के लौटने के इंतज़ार में है.