दुनिया के सबसे कठिन कार्यों में शामिल है बच्चों को पालना। माता-पिता के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं होता है। उन्हें शुरुआत से उन बातों का ध्यान रखना पड़ता है जिनका उनके बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है। उन्हें अच्छी आदतों के साथ-साथ अच्छाई और बुराई में भी फर्क सिखाना पड़ता है।
लेकिन कई बार पेरेंट्स अपने बच्चों की परवरिश उसी तरीके से करते हैं जिससे कि वे बड़े हुए। वे उन्हीं तरीकों को अपनाते हैं जिन्हें उनके माता-पिता ने उनकी परवरिश के समय पर अपनाया होता है।
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हालांकि, अब समय बदल रहा है। बच्चे अब समय के हिसाब से जल्दी बड़े होने लगते हैं। वे अपने आस-पास के वातावरण को देखकर जल्द ही प्रभावित हो जाते हैं। इसलिए पेरेंट्स को बच्चों की परवरिश के लिए कुछ नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए। ऐसा करने से उनके बच्चों में नियम बद्धता और समझदारी दोनों ही बनीं रहती हैं।
आइये जानते हैं क्या हैं वो नियम।
दोपहर 12 बजे तक भोजन कर लें
कई बार आपने देखा होगा कि लोगों के घरों में दोपहर का खाना 2-3 बजे के बीच में खाया जाता है। इससे बच्चे पूरी तरह से टूट जाते हैं। इसलिए सबसे पहले बच्चों को एक पौष्टिक नाश्ता कराएं उसके बाद जब उन्हें भूख लगे तब उन्हें पोषणयुक्त भोजन कराएं। कोशिश करें कि दोपहर का भोजन 12 बजे तक कर लें। ऐसा करने से बच्चों में नियम बद्धता बनी रहती है और वे समय के अनुसार चलते हैं।
टीवी और मोबाइल के लिए तय करें समय
कई बार आपने देखा होगा कि पेरेंट्स बच्चों को शांत करने के लिए फोन पकड़ा देते हैं। धीरे-धीरे यह उनकी आदत में आ जाता है। जब वे बड़े होते हैं तब वे टीवी और फोन दोनों के आदि हो जाते हैं जिसका नतीजा ये रहता है कि कम उम्र में ही बच्चों की आखों पर चश्मा चढ़ जाता है। इसलिए अपनी मुसीबत को कम करने के लिए बच्चों को फोन और टीवी की तरफ धकेलना बंद करें। इसके बदले उन्हें दादी-नानी की कहानियां सुनाएं, उनके साथ खेलें। इससे बच्चों के साथ आपकी दोस्ती भी बढ़ेगी और वे आपको समझ भी सकेंगे।
बच्चों से करें दोस्ती
पहले के ज़माने में लोग अपने माता-पिता से इतना डरते थे कि उनके सामने अपनी बात कहने में हिचकिचाते थे। लेकिन अब ज़माना बदल रहा है, कई शहरों में पेरेंट्स और बच्चों के बीच एक ऐसा रिश्ता देखने को मिलता है जिसमें बच्चे अपने मन की हर बात माता-पिता के साथ शेयर करते हैं। हालांकि, गावों में आज भी पिता के सामने बच्चे आवाज़ तक निकलाने से कतराते हैं। धीरे-धीरे उनका यह डर एक दिन बड़ा रुप ले लेता है जिसकी वजह से बच्चे माता-पिता से बातें छुपाने लगते हैं। इसलिए आप भी अपने बच्चे के साथ शुरुआत से ही ऐसा बॉन्ड स्थापित करें जिसे आप दोस्ती का नाम दे सकें।
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